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। २२१ } सारे विवाह की स्थिति रासो की अन्य वाचनामों में भी देखी जानी अति अवश्यक है ।। शील जी ने समुद्रशिखरगढ़ की पद्मावती १, देवगिरि की शशिवृता, मालवा की इन्द्रावती और रणथम्भौर की हंसावती के पृथ्वीराज से विवाह १. लेखक ने राढ़ के पालवंशी प्रतापी राजा के नाम सुने होंगे और वारेन्द्र भूमि के प्रतापी राजा विजयसेन का नाम सुना होगा, इन दोनों को मिलाकर उसने विजयपाल नाम गई लिया होगा । इस विवाह की कहानी को यदि अधिक ध्यान देकर देखें तो प्रतीत होगा कि रासो के रसिक लेखक ने महाभारत में वर्णित भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के विवाह की कथा का अनुकरण कर यह एक नई कथा गढ़ कर लिख दी है । पृथ्वीराज को श्रीकृण से उपमित कर उनको भी एक अवतार बनाना चाहा । रासो के इस अंश से ऐति ही सिक सत्य संवाद निकालना और मरुभूमि की चालुकाराशि से विशुद्ध पय उत्पन्न करना किसी गुप्त विद्या से ही संभव हो सकता है। सरस्वती, सन् १९२६ ३०, भाग २७, संख्या ५, पृ० ५६१-६२ ; २. पृथ्वीराज की यौवनावस्था में नर्मदा से कची तक विस्तृत कल्याण राज्य की ईंटें खिसक रही थीं उस समय देवगिरि में वहाँ का एक वेतनभोगी दुर्गपति रहता था । ११८९ ई० के उपरान्त इस दुर्गपति ने कल्याण-राज को दुर्बल देखकर स्वाधीन होने की चेष्टा की । ईसा की तेरहवीं सदी में देवगिरि के यादिवों में पूर्ण गौरव से राज्य किया !...सो में संवत् नहीं लिखा है, तथापि याशिवृता का विवाह सन् ११८६ ई० से पहले ही हुआ होगा । सरस्वती, भाग २७, संख्या ६, ० ६७६ ।। अस्तु अवार्य द्विवेदी जी के संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो' का शशिन्नता बिवाह प्रस्ताव भी द्विविधा में पड़ जाता है ।। ३. मालवा के लक्ष्मीवर्मा ( सन् ११४३ ई० ), हरिश्चन्द्र ( सन् ११७६ | ई० ) और उदय वर्मा (सन् ११६६ ई०) के दानपत्रों को देखने पर रासो के ( समय ३३ ) के भीमदेव, यादवराय और इन्द्रावती कल्पित पात्र प्रमाणित होते हैं । वही, इ० ६७७ ; ४. वि० सं० १५०० रचित हम्मीरमहाकाव्य ( स ४) के अधार पर पृथ्वीराज का पुत्र गोविंदा ही रणथम्भौर का प्रथम शासक था ।