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रत्नसिंह पृथ्वीराज का भानजा नहीं हो सकता है चित्तौर के राना वंश में एक से अधिक समरसिंह अौर रत्नसिंह नाम के रान हो चुके हैं। १ । महामहोपाध्याय शोझा जी ने भावनगर ई सक्रिशन्स, नादेसमा के शिलालेख, पाक्षिकवृति४, चित्तौड़ के पास गंभी नदी के पुल की नव मेहराब के शिलालेख, चीरवे ॐ विष्णु-मन्दिर के समरसिंह के प्रथम के अौर अन्तिम शिलालेख के प्रमाण देते हुए लिखा है--रावल समर सिंह वि 3 सं० १३५६ सेक अर्थात् पृथ्वीराज की मृल्यु से १०६ बर्य पीछे तक तो अवश्य जीवित था । ऐसी अवस्था में पृथावाई के विवाह की कथा भी कपोलकल्पित है। पृथ्वीराज, समरसिंह और ऋथाबाई के वि० सं० ११४३ र ११४५ ( इस संदत के दो ); वि० सं० ११३८ र ११४५ ; लथा वि० सं० ११४५ और ११५७ के जो पुत्र, पट्टे, परवाने नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हिंदी पुस्तकों की खोज में फोटो सहित छुपे हैं, वे सुई जाली हैं, जैसा कि हमने नागरी प्रचारिणी पत्रिका | नवीन संस्करण ) भाग १, पृ० ४३२-५२ में बतलाया हैं । शोल जी रासो की कथा पर सन्देह प्रकट करके पूर्व ही यह भी लिख चुके थे कि सभरसिंह और रत्नसिंह नाम के कई राना चिदौड़ में हुए हैं । चित्तौड़ के रासायों के विषय में पर्याप्त छानबीन करके झा जी ने पहले यह अनुमान किया---'समतसी और समरसी नाम परस्पर मिलते-जुलते हैं अस्तु माना जा सकता है कि अजमेर के चौहान राजा पृथ्वीराज दूसरे (पृथ्वीगट ) की बहिन पृथा न ई का विवाह मेवाड़ के बिल समतसी ( सामंतसिंह ) १. चन्दवरदाई का पृथ्वीराजरासो, सरस्वती, भाग २७, संख्या ६, जून, सन् १९२६ ३०, १० ६७६ ; । २. सं० १२७० वि० का लेख, टिप्पणी १० ६.३ : ३, सं० १६७६ वि० का लेख, भावनगर प्राचीन शोध संग्रह ; ४, पीटर्सन की तीसरी रिपोर्ट, पृ० १३० के अनुसार सं० १३०६ वि० रचित ; ५. जे० ए० एस० बी०, जिल्द ५५, भाग १, सन् १८८६ ई०, पृ० ४६ ४७ : ६. बियना ओरियंटल जर्नल, जिल्द २१, १० १५५०६२ ; ७. उदयपुर के विक्टोरिया हाक में सुरक्षित ; ८, पृथ्वीराज रास का निर्माण काल, ना० प्र० प०, भाग १०, सं०१६ ८६ वि० (सन् १९२६ ई० ), पृ० ४४-४५ ;