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१५४३ ई० ॐ अस-पास कभी च? गथः सिद्ध किया। पं० रमाशंकर त्रिपाठी ने चंद के वंशजों पर प्रकाश डाला । पंजाब-विश्वविद्यालय के उपकुलपति डॉ० वूलनर ( Dr. A, C. }}oolner ) ने डॉ० वनारसीदास जैन और महामहोपाध्याय पं० मथुराप्रसाद दीक्षित को अपने विश्वविद्यालय के सात सहने छन्द परिमाण वाले रसो का सम्पादन करने के लिये प्रोत्साहिद किया । दीक्षित जी ने उक्त हस्तलिखित ग्रन्थ का प्रथम समय असली पृथ्वीराज रासो के नाम से सटीक प्रकाशित किया और अपने विविध लेखों में चंद और उसकी कृति को प्रामाणिक प्रतिपादित करते हुए गौ० ही झा का खंडन किया । योझा जी ने दीक्षित जी के मत का विरोध करते हुए रास को पुनः अप्रामाणिक ही निश्चय किया । हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखने वालों में प्रमुख गास द तासी६, डॉ० ग्रियर्सन ७ । जो बाद में बदल गये ) और बाबू श्यामसुन्दर दास ( जिन्होने बाद में चंद द्वारा रासो के अपभ्रंश में रचे जाने पर विश्वास प्रकट किया ) १० को छोड़ कर १. नागरी प्रचारिशी पत्रिका, नवीन संस्करण, भाग १, सन् १६२० ३०, पृ० ३७७-४५४ ; वह, भाग ६, पृ० ३३-३४ ; तथा पुथ्वीराज रासो का निर्माण काल, कोषोत्सव स्मारक संग्रह, सन् १९२८ ई० ; ३. महाकवि चंद के बंशधर, सरस्वती, नवम्बर सन् १९२९ ई० ; ३. होलीलाल बनारसी दास, लाहौर, सन् १९ ३८ ३० ; ४, पृथ्वीराज रासो और चंद वरदाई, सरस्वती, नवम्बर सन् १९३४ ई० ; चंद बरदाई और जयानक कवि, सरस्वती, जून सन् १९३५ ई०; पृथ्वीराज रासो की प्रामाणिकता, सरस्वती, अप्रैल सन् १९४२ ई० ; ५. पृथ्वीराज रासो के संबंध की नवीन चर्चा, सुधा, फरवरी सन् १९४१ ई०; ६, इस्त्वार द ला लितरात्यूर ऐन्दुई ए ऐन्दुस्तानी, प्रथम भाग, पृ० ३८२० ७. माडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर आय हिन्दोस्तान, जे० ए० एस० बी०, | भाग १, सन् १८८६ ई०, पृ० ३-४ ; ८. प्रोसीडिंग्ज, जे० ए०, एस० बी०, सन् १८६ ३ ई०, पृ० ११६, | अबीटयूरी नोटिस अवि मिस्टर एफ० एस० ग्राउज़ ; ६, हिंदी साहित्य, ( चतुर्थं संस्करण, सं० २००३. वि० ), ४० ८१-८६ ; १०. पृथ्वीराज रासो, ना० प्र० १०, बर्ष ४५, अंक ४, भाव, सं० १६६७ वि० ;