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A, F, Radoi Hoercile) के इस दिशा में प्रयास मूलत: टॉड के राजस्थान की प्रेरण! के फल हैं। जिस समय इन विद्वानों को नियुक्त कर, बंगाल को एशियाटिक सोसाइटी ने रास के उद्धार का बीड़ा उठा रखा था, उसी समय के लगभग जोधपुर के सुरारिदान चारण और उदयपुर के कविराज श्यामलदास ने उक्त काव्य की ऐतिहासिकता पर शंका उठाई जिसे काश्मीर में अति अधूरे ‘पृथ्वीराजविजय' की खोज करने वाले प्रो० बुलर (Buhier) और उनके शिष्य डाँ० मोरिसन (Dr.Herbert IN Orison) का बल मिला, जिसके फलस्वरूप सोसाइटी ने रासो-कार्य बंद कर दिया है। बरदाई, इनटाइटिल्ड ‘दि मैरिज विद यदमावती, लिटरली ट्रांसलेटंड फ्राम अोल्ड हिन्दी, जे० ए० एस० बी०, जिल्द ३८, भाग १, सन् १८६६ ई० ; रेपलाई टु मिस्टर ग्राउज़, वही ; ट्रांसलेशन्स प्राई सेलेक्टेड पोर्शन्स झाव बुक I आव चंद बरदाईज़ एपिक, वहीं, जिद ४१, सन् १८७२ ई० ; लिस्ट झाव बुक्स कन्टेन्ड इन चंद पाइम, दि प्रिथ्वीराज रासौ, जे० आर० ए० एस०, सन् १८७२ ई० ; और स्टडीज़ इन दि झामर आव चंद बरदाई, जे० ए० एस० बी०, जिल्द ४२, भाग २, सन् १८७३ ई०; १. बिब्लिशोधेका इंडिका, (ए० एस० बी०), न्यू सीरीज़, संख्या ३०४, भाग २, फैसीक्यूलस १, सन् १८७४ ई०, (सम्पादित पाठ नृथ्वीराज रासो समय २६-३५) ; तथा वही, संख्या ४५२, भाग २, कैसीक्यूलस १, सन् १८८१ ई०, रेवातटे समय को अंग्रेजी अनुवाद ); तथा नोट्स अनि सम मोसोडिकल पिक्यूलिअरिटीज़ झाव चंद, इंडियन ऐटीवैरी, जिल्द ३, पृ० १०४; . २. जे० बी० बी० ए० एस०, जिल्द १२, सन् १८७६ ई० ; ३. दि ऐन्टीकिटी, अथेन्टसिटी ऐन्ड जिनूननेस व दि’ एपिक काल्ड दि प्रिथराज रासा, ऐन्ड कामनली ऐसक्राइब्ड टु चंद बरदाई, जे० ए० एस० बी० , जिल्द ५५, भाग १, सन् १८८६ ई० ; तथा पृथ्वीराज रहस्य की नवीनता ; ४. प्रोसीडिंग्ज़, जे० ए० एस० वी०, जनवरी-दिसम्बर सन् १८९३ ई०, ५, सम अकाउन्ट अव दि जीनिोलॉजीज़ इन दि पृथ्वीराज विजय, वियना अोरियन्टल जर्नल, भाग ७, सन् १८६ ३ ई० ;