पृष्ठ:Reva that prithiviraj raso - chandravardai.pdf/१४८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(१३८)

________________

रासौ १, मेवाड़ के राय' कर्णसिंह तक के शौर्य-गीत गाने वाला सं० १७३७-५५ वि० २चित सिंढायच दयालदास कृत 'राणा रसो, सं० १७८५ वि० में जोधराज कृत हम्मीर सो; गुलाब कवि कृत १६ वीं शती का *करहिया र यसौ त । हुमायू के भाई काभएँ । परास्त करने वाले बीकानेर के महाराज व जैत सी का अस्ति वाचक, पे० नरोक्षमस्वामी द्वारा प्रकाश में लाया हुअा, अज्ञात कत्रि रचित राङ जैत सी रौ रास’४ सुप्रसिद्ध रचनायें हैं। इनके अतिरिक्त-कृष्ण का रासे वर्णन करने वाले व्यास कृत रास५ ( लिपिकाले सं० १७२४ वि० ) और रसिकराय कृत रास विलास’६ ( लिपिकाल सं० १८०० वि० ) म पिंगल की रचनायें हैं तथा से० १६२५ त्रि में कवि जल्ह द्वारा प्रणीत ‘बुद्धि रासो' जो रासो होते हुए भी प्रेमाख्यान है, उल्लेखनीय हैं । । यद्यपि इन सारे रासे, रासा, रासो, रास, रायसा, यिसौ ग्रन्थों का सम्यक अध्ययन अभी तक प्रकाश में नहीं आया है परन्तु काल, यश और प्रचार की कसौटी पर पृथ्वीराज-रासो' को जो मान प्राप्त हुआ वह इन में से किसी के भाग्य में न पड़ा । हावरोहपूरा विशिष्ट मानव-जीवन के संर्घ का चित्रण, वर्ण अं र अर्थ मूर्तियों द्वारा सृजन कर, यति-गति वाले वांछित छन्दों से अपने पात्रों के अान्तरिक उद्वेलन को शाश्वत रूप से मूर्त करते हुए कवि ने इतिहास और कल्पना के योग से उनके विजय, प्रल्हाद अवसाद, भ, चिन्ता, आशा, निराशा आदि के द्वारा श्रोता अथवा पाठक के चित्त को अभिभूत करने का मंत्र सिद्ध किया है। यही कारण है रासो की साहित्यिक जय-दुन्दुभी का । उसकी सुदीर्घ और सुनिश्चित परम्परा अपनी छाप सहित परवत रासो-काव्य में निरन्तर प्रतिविम्वित देखी जा सकती है। १. राजस्थान कर पिंगल साहित्य, पृ० १६६; राजस्थान भारती, भाग ३, | अङ्क ३-४, जुलाई १९५३ ई०; २. राजस्थान का पिंगल साहित्य, पृ० ११५; राजस्थान में हिन्दी के | हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज, प्रथम भाग, पृ० ११८; ३. नागरी प्रचारिणी ग्रंथ माला,१३, सन् १९.०८ ई०; ४. रजिस्थान भारती, भाग २, अङ्क २, सन् १६४९ ई०, पृ० ७०-८५; ५. राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रंथों की खोज, प्रथम भाग, १० ६. वही पृ० १२१; ७. वही, पृ० ७६-७७; राजस्थान का पिंगल साहित्य, १० ७०:२;