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करि धर्म देव देवर अनेक । करि धम्म दे देइल अअ । षोड़सः दान दिन देहु देव । सोलसा दाण दि िदेहु देश ।। भी सीख मानि प्रभु पंग जीव । महु सिक्नु मरिश पहु पंग जीव ! कलि अथि नहीं जा सुग्रीव । कलिहि अस्थि राहि श्रिा सुगव !! हैं कि पंग राइ *त्रिय समांन । हङि ३:- मति समः । लहु लोभ ऋ तुल्य नियनि । लहु लाश बोल्लिर डिणारी !! गाथा । राई के के न गए महि महु । के के ए गय महि-जिक | दिल्ली दिल्लाय दी होय ! दिल्ली दिल्लविउ दाह होहोहु । विहरंतु जासु किसी। विहरई जाई तु क्रिति | हो गया नहि गया हैति ।। ते रात्री वि एहि गया हदन्ति ।। | पद्धई। पद्धटिया पहु ! राइ राजसू जरग ! पहु पंग राय राजसुञ जग्ग ।। आरंभ अंग कौनौ सुरः ।। प्रारंभ अं कीयउ सरग ।। जिलिशा राइ सब सिंधवार । जित्तिअ राय सव्व सिंघारि । मेलिया कंठ जिमि मुत्तिहार || मेलिय कैठि जिमि मुतिअहारि ।। जुरिवानिपुरेस सुनि भयौं खेद । जोइणिपुरेल सुशिश हुआ खेको । श्रावई ने माल मक हिय भेद ।। श्रावण मास मकि हि भेल ।। सुक्कले दूत तब तिह ससत् । मोकल्लिक दूर तहिं समत्थे । उतरे आवि दरबार तत्थ ।। उत्तय तार वारि तत्थ ।। बुल्यौ न बयन प्रिंथराज ताहि । बल्लिड ए ता वयण पुत् विराई । सकल्यौ सिंघ गुरजन नियाहि ।। सेकेल्लियजु गुरुयण याइ ।। उहचरिय राव गोविन्दराज | उच्चरिअरु कोविन्दर । कलि मध्ये जर को करे आज | कलि मज्झि जा को करइ अझ }} सतिजुर्ग कहहि बलिराज कीन । सशत्रुटि कहई बलि राय की । तिहि किति काज त्रिलोकदीन }} ते किन्दिन का तिलोअ दीय ।। त्रेता तु किन्ह रवुनंद राइ । तेअई तु कीय रझुणंद राई । कुबेर कोपि बल्यो सुभाइ । कुबेर कोइ वर तिय सभाइ ।। धन धम्मैपूत द्वापर तुनाई। धरि बम्मपुत दावरि सुइ । तिहि धछ बीर अरु अरि सहाई ।। तहि परिव वीर असे अरिहाइ ।। कनि भझि जर को करण जोग ! कलिमझ जग्गको करण जोये ।। बिगरै बहु विधि हसे लोग ।। बिगरहिं बहु झिहि इसई छ ।