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रोजके विचार


आश्चर्य है कि वैद्य मरते है, डॉक्टर मरते है, फिर भी अुनके पीछे हम भटकते है। लेकिन जो राम मरता नहीं है, हमेशा जिन्दा रहता है और अचूक वैद्य है, अुसे हम भूल जाते है।

––सेवाग्राम, ३०-१२-'४४

इससे भी ज्यादा आश्चर्य यह है कि हम जानते है कि हम भी मरनेवाले तो है ही, बहुत करे तो वैद्यादिकी दवासे शायद हम थोड़े दिन और काट सकते है और अिसलिअे ख्वार होते है।

––सेवाग्राम, ३१-१२-'४४

इसी तरह बूढ़े, बच्चे, जवान, धनिक, गरीब, सबको मरते हुअे पाते है, तो भी हम संतोषसे बैठना नही चाहते और थोड़े दिन जीनेके लिअे रामको छोड़ सब प्रयत्न करते है।

––सेवाग्राम, १-१-'४५

कैसा अच्छा हो कि अितना समझकर हम रामके भरोसे रहकर जो भी व्याधि आवे, अुसे बरदाश्त करे और अपना जीवन आनन्दमय बनाकर व्यतीत करे!

––सेवाग्राम, २-१-'४५

अगर धार्मिक माना जानेवाला मनुष्य रोगसे दुखी हो, तो समझना चाहिअे कि उसमे किसी-न-किसी चीज की कमी है।

––सेवाग्राम, २२-४-'४५

अगर लाख प्रयत्न करने पर भी मनुष्यका मन अपवित्र रहे, तो रामनाम ही उसका अेकमात्र आधार होना चाहिये।

––मद्रासके नजदीक पहुचते हुअे, २१-१-'४६

मै जितना ज्यादा विचार करता हूँ, अुतना ही ज्यादा यह महसूस करता हूँ कि ज्ञानके साथ हृदयसे लिया हुआ रामनाम सारी बीमारियोकी रामबाण दवा है।

––अुरुळी, २२-३-'४६

आसक्ति, घृणा वगैरा भी रोग है और वे शारीरिक रोगोसे ज्यादा बुरे है। रामनामके सिवा अुनका कोअी इलाज नही है।

––उरुळी, २३-३-'४६