पृष्ठ:Rajasthan Ki Rajat Boondein (Hindi).pdf/९३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



परजन्य मुदिर पाळग भरण (तीस नाम) नीरद (तणा)॥

श्री हमीरदान रतनू विरचित हमीर नांम-माला में बादलों के नामों की घटा इस प्रकार छा जाती है :

पावस मुदर बळाहक पाळग,
धाराधर (वळि) जळधरण।
मेघ जळद जळवह जळमंडळ,
घण जगजीवन घणाघण॥
तड़ितवांन तोईद तनयतुं,
नीरद वरसण भरण-निवांण।
अभ्र परजन नभराट आकासी,
कांमुक जळमुक महत किलांण।
(कोटि सघण, सोभा तन कांन्हड़,
स्यांम त्रेभुअण स्याम सरीर।
लोक मांहि जम जोर न लागै,
हाथि जोड़ि हरि समर हमीर)॥

श्री उदयराम बारहठ विरचित अवधान-माला में बचे हुए नाम इस तरह समेटे गए हैं :

धाराधर घण जळधरण मेघ जळद जळमंड,
नीरद बरसण भरणनद पावस घटा (प्रचंड)।
तड़ितवांन तोयद तरज निरझर भरणनिवांण,
मुदर बळाहक पाळमहि जळद (घणा) घण (जांण)।
जगजीवन अभ्रय रजन (हू) काम कहमत किलांण,
तनयतू नभराट (तब) जळमुक गयणी (जा'ण)॥

डिंगल कोष की एक अन्य सूची, जिसके कवि अज्ञात ही हैं, बादल के कुछ ज्ञात-अज्ञात नाम और जोड़ती हैं :

मेघ जळद नीरदं जळमंडण,
घण बरसण नभराट घणाघण।
महत किलांण अकासी जळभुक,
मुदर बळाहक पाळग कांमुक।
धाराधर पावस अभ्र जळधर,
परजन! तड़ितवांन तोयद (पर) सघण तनय (तू)
स्यामघटा (सजि),
गंजणरोर निवांणभर गजि।

काली घटाओं की तरह उमड़ती यह सूची कविराजा मुरारिदान द्वारा रचित डिंगल कोष के इस अंश पर रोकी भी जा सकती है :

मेघ घनाधन घण मुदिर जीमूत (र) जळवाह,
अभ्र बळाहक जळद (अख) नमधुज धूमज (नाह)॥

डिंगल कोष के ये संदर्भ हमें श्री नारायण सिंह भाटी द्वारा संपादित और राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी, जोधपुर द्वारा सन् १९५७ में प्रकाशित डिंगल-कोष से मिले हैं।

बादलों के स्वभाव, रंग रूप, उनका इस से उस दिशा में दौड़ना, किसी पहाड़ पर थोड़ा टिक कर आराम करना आदि की प्रारंभिक सूचनाएं राजस्थानी

९२
राजस्थान की रजत बूंदें