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सूचनाएं श्री बदरीप्रसाद साकरिया और श्री भूपतिराम साकरिया के राजस्थानी शब्दकोश से मिली हैं। वर्षा-सूचकों में चंद्रमा की ऊभो या सूतो स्थिति हमें श्री दीनदयाल ओझा और श्री जेठूसिंह ने समझाई। डंक-भडली पुराण में वर्षा से संबंधित कुछ अन्य कहावतें इस प्रकार हैं :

मंगसर तणी जे अष्टमी, बादली बीज होय। सांवण बरसै भडली, साख सवाई जोय॥
यदि मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को बादल और बिजली दोनों हों तो श्रावण में वर्षा होगी और फसल सवाई होगी।
मिंगसर बद वा सुद मंही, आधै पोह उरे। धंवरा धुंध मचाय दे, (तौ) समियौ होय सिरे॥

यदि मार्गशीर्ष के पहले या दूसरे पक्ष में अथवा पौष के प्रथम पक्ष में, प्रातःकाल के समय धुंध (कोहरा) हो तो जमाना अच्छा होगा।

पोष अंधारी दसमी, चमकै बादल बीज। तौ भर बरसै भादवौ, सायधण खेलै तीज॥

यदि पौष कृष्ण दसमी को बादलों में बिजली चमके तो पूरे भादों में वर्षा होगी और स्त्रियां तीज का त्यौहार अच्छी तरह मनाएंगी।

पोह सबिभल पेखजै, चैत निरमल चंद। डंक कहै हे भड्ड, मण हूंता अन चंद॥

यदि पौष में घने बादल दिखाई दें और चैत्र के शुक्ल पक्ष में चंद्रमा स्वच्छ दिखाई पड़े यानी कोई बादल दिखाई न दें तो डंक भडली से कहता है कि अनाज मन से भी सस्ता होगा।

फागण वदी सु दूज दिन, बादल होए न बीज। बरसै सांवण भादवौ, साजन खेलौ तीज॥
यदि फाल्गुन कृष्ण द्वितीया के दिन बादल या बिजली नहीं हो तो श्रावण व भादों में अच्छी वर्षा होगी, अतः हे पति, तीज अच्छी तरह मनाएंगे।

बादल जहां सबसे कम आते हैं, वहां बादलों के सबसे ज्यादा नाम हैं। इस लंबी सूची की–कोई चालीस नामों की पहली छंटाई हम राजस्थानी-हिन्दी शब्द कोश की सहायता से कर सके हैं। इनमें विभिन्न डिंगल कोशों से कई नाम और जोड़े जा सकते हैं। कवि नागराज का डिंगल कोश मेघ के नाम इस प्रकार गिनाता है :

पावस प्रथवीपाळ बसु हब्र बैकुंठवासी,
महीरंजण अंब मेघ इलम गाजिते-आकासी।
नैणे-सघण नभराट ध्रुवण पिंगळ धाराधर,
जगजीवण जीभूत जलद जळमंडल जळहर।
जळवहण अभ्र वरसण सुजळ महत कळायण (सुहामणा),

कमल के पत्तों पर बुनियाद

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राजस्थान की रजत बूंदें