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कळब्रछपता पयध मकराकर (भाखां फिर) सफरीभंडार॥

इस तरह पानी में से निकला मरुभूमि का मन समुद्र के इतने नाम आज भी याद रखे हैं और साथ ही यह विश्वास भी कि कभी यहां फिर से समुद्र आ जाएगा :

हक कर बहसे हाकड़ो, बंध कर तुट से अरोड़ सिंघड़ी सूखो जावसी, निर्धनियो रे धन होवसी उजड़ा खेड़ा फिर बससी, भागियो रे भूत कमावसी इक दिन ऐसा आवसी।

हाकड़ो बाद में समुद्र से, दरियाव से बस दरिया, नदी बन गया। हाकड़ो को तब इसी क्षेत्र में कभी लुप्त हो गई प्राचीन नदी सरस्वती के साथ भी रखकर देखा गया है। आज इस क्षेत्र में मीठे भूजल का अच्छा भंडार माना जाता है और इसे उन नदियों की रिसन से जोड़ा जाता है।

सीमा के उस पार पाकिस्तान के सख्खर जिले में अरोड़ नामक स्थान पर एक बांध है। एक दिन ऐसा आएगा कि वह बांध टूट जाएगा। सिंध सूख जाएगा, बसे खेड़े गांव उजड़ जाएंगे, उजड़े खेड़े फिर बस जाएंगे, धनी निर्धन और निर्धन धनी बन जाएंगे-एक दिन ऐसा आएगा।

हाकड़ो की प्रारंभिक जानकारी और राजस्थानी में समुद्र के कुछ नाम हमें श्री बदरीप्रसाद साकरिया और श्री भूपतिराम साकरिया द्वारा संपादित राजस्थानी हिंदी शब्द कोश, पंचशील प्रकाशन, जयपुर से मिले। इसे ढंग से समझने का अवसर मिला श्री दीनदयाल ओझा (केला पाड़ा, जैसलमेर) तथा श्री जेठूसिंह भाटी (सिलावटापाड़ा, जैसलमेर) के साथ हुई बातचीत से। ऊपर व्यक्त की गई आशा 'इस दिन ऐसा आवसी' भी श्री जेठू से मिली है। डिंगल भाषा में समुद्र के नाम राजस्थानी शोध



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राजस्थान की
रजत बूंदें