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बोत्सवाना की ८५ प्रतिशत आबादी, राजस्थान की तरह ही गांवों में बसती है । लेकिन यहां एक अंतर है और यह अंतर जल के अभाव के कारण है । गांव की आबादी वर्ष-भर एक घर में नहीं बल्कि तीन घरों में घूमती है। एक घर गांव में, दूसरा चरागाह में और तीसरा घर 'गोशाला' में | जुलाई से सितम्बर तक लोग गांव के घर में रहते हैं। अक्तूबर से जनवरी तक चरागाहों में और फिर फरवरी से जून तक गोशाला में।

यहां राजस्थान की तरह कुंडी, कुंइयां, टांकों आदि का चलन कम से कम आज देखने में नहीं आता । बस ज्यादातर पानी कुओं से और वर्षा के मौसम में निचले क्षेत्र में एकत्र हुए प्राकृतिक तालाबों से मिलता है।

उपलब्ध जानकारी के अनुसार पता चलता है कि यहां पहली बार सन् १९७५ से ८१ के बीच कैनेडा स्थित एक अनुदान संस्थान के सहयोग से जल संग्रह की कुंडीनुमा पद्धति का प्रयोग प्रारंभ हुआ था। इसमें सरकार के बड़े-बड़े अधिकारी, विदेशी इंजीनियर, जल विशेषज्ञ यहां के कुछ गांवों में घूमे और उन्होंने खलियानों में अनाज सुखाने के लिए बनाए जाने वाले आंगन में थोड़ा-सा ढाल देकर एक कोने में गड्ढ़ा कर उसमें वर्षा के जल का कुछ संग्रह किया है। शत-प्रतिशत विदेशी सहयोग से, कहीं बहुत दूर से लाई गई सामग्री से ऐसी दस 'कुंडियां' बनाई गई हैं। हरेक का, हर तरह का हिसाब-किताब रखा जा रहा है, लागत-लाभ के बारीक अध्ययन हो रहे हैं। ये सभी 'कुंडियां गोल न होकर चौकोर बनी हैं। चौकोर गड्ढे में भूमि का दबाव चारों तरफ से पड़ता है, इसलिए उसके टूटने की आशंका बनी रहती है । गोल आकार के बदले चौकोर आकार में चिनाई का क्षेत्रफल अधिक होता है- भले ही संग्रह की क्षमता उतनी ही हो। इसलिए अब ये बनाना चाहिए ।

इन 'प्रयोगात्मक कुंडियों की सार-संभाल के लिए गांव वालों को, उपयोग करने वाले परिवारों को 'उन्हीं की भाषा में' प्रशिक्षित किया जा रहा है। कुंडी में पानी के साथ रेत न जाए- इसके भी प्रयोग चल रहे हैं | एक खास किस्म की छलनी लगाई जा रही है । पर विशेषज्ञों का कहना है कि इसके साथ एक ही दिक्कत है- इसे हर वर्ष बदलना पड़ेगा । इन कुंडियों के मुंह पर बिठाए गए सीमेंट के ढक्कनों में भी दरारें पड़ गई हैं। इसलिए अब इनके बदले गोल गुंबदनुमा ढक्कनों को लगाने की सिफारिश की गई है।

इसी तरह इथोपिया में दुनिया भर की कोई पांच संस्थाएं पानी के मामले में समस्याग्रस्त रजत बूंदें सब कुएं बीस मीटर से ज्यादा गहरे नहीं हैं। फिर भी इन विशेषज्ञों के सामने 'सबसे बड़ी