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राजस्थान की रजत बूंदें

आज इसे थका दिया गया है

उन्नीसवीं सदी के इस साठी कुएं ने बीसवीं सदी भी आधी पार कर ली थी। फिर सन् १९५६ में यह सांगीदासजी के परिवार के हाथ से नगरपालिका के हाथ में आ गया। चार सारणों पर बैलजोड़ियों का दौड़ना थम गया। सुंदर कुएं के ठीक ऊपर एक बेहद भद्दा कमरा बनाया गया, बिजली लगी और कुएं में तीन सौ पांच फुट की गहराई पर पंद्रह हार्स पावर का एक पंप बिठा दिया गया। पानी अथाह था। यदि चौबीस घंटे शहर में बिजली रहे तो वह दिन-रात चलता था और हर घंटे हजार गैलन पानी ऊपर फेंकता था। फिर पंप की मोटर को पंद्रह से बढ़ा कर पच्चीस हार्स पावर में बदला गया। साफ-सफाई होना बंद हो गया, बस पानी खींचते चले गए। पानी कुछ कम होता दिखा, कुएं ने संकेत दिया कि काम तो पूरा ले रहे हो पर सार संभाल भूल गए हो। नगरपालिका ने संकेत का अर्थ कुछ और ढंग से लिया। सत्तर फुट की बोरिंग और कर दी। तीन सौ हाथ गहरे कुएं में सत्तर फुट और जुड़ गए। लेकिन सन् ९० तक आते-आते कुआं थक गया। फिर भी थके-मांदे कुएं ने और चार साल तक शहर की सेवा की। मार्च १९९४