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पानी तो शहर-भर का यहीं से जाता था। यों तो दिन-भर यहां से पानी भरा जाता लेकिन सुबह और शाम तो सैकड़ों पनिहारिनों का मेला लगता। यह दृश्य शहर में नल आने से पहले तक रहा है। सन् १९१९ में घड़सीसर पर उम्मेदसिंहजी महेता की एक गजल ऐसे दृश्यों का बहुत सुंदर वर्णन करती है। 'भादों की कजली", तीज के मेले पर सारा शहर सज-धज कर घड़सीसर आ जाता। सिर्फ नीले और पीले रंग के इस तालाब में तब प्रकृति के सब रंग छिटक जाते।

घड़सीसर से लोगों का प्रेम एकतरफा नहीं था। लोग घड़सीसर आते और घड़सीसर भी लोगों तक जाता था और उनके मन में बस जाता। दूर सिंध में रहने वाली टीलों नामक गणिका के मन ने संभवतः ऐसे ही किसी क्षण में कुछ निर्णय ले लिए थे।

तालाब पर मंदिर, घाट-पाट सभी कुछ था। ठाट में कोई कमी नहीं थी। फिर भी टीलों को लगा कि इतने सुनहरे सरोवर का एक सुनहरा प्रवेश द्वार भी होना चाहिए। टीलों ने घड़सीसर के पश्चिमी घाट पर प्रवेश द्वार - पोल बनाना तय कर लिया। पत्थर पर बारीक नक्काशी वाले सुंदर झरोखों से युक्त विशाल द्वार अभी पूरा हो ही रहा था कि कुछ लोगों ने महारावल के कान भरे, "क्या आप एक गणिका द्वारा बनाए गए प्रवेश द्वार से घड़सीसर में प्रवेश किया करेंगे?" विवाद शुरू हो गया। उधर द्वार पर काम चलता रहा। एक दिन राजा ने इसे गिराने का फैसला ले लिया। टीलों को खबर लगी। रातों-रात टीलों ने प्रवेश द्वार की सबसे ऊंची मंजिल में मंदिर बनवा दिया। महारावल ने अपना निर्णय बदला। तब से पूरा शहर इसी सुंदर पोल से तालाब में प्रवेश करता है और इसे आज भी टीलों के नाम से ही याद रखे है।

टीलों की पोल के ठीक सामने तालाब की दूसरी तरफ परकोटेनुमा एक गोल बुर्ज है। तालाबों के बाहर तो अमराई, बगीचे आदि होते ही हैं पर इस बुर्ज में तालाब के भीतर 'बगीची' बनी है जिसमें लोग गोठ करने, यानी आनंद-मंगल मनाने आते रहते थे। इसी के साथ पूरब में एक और बड़ा गोल परकोटा है। इसमें तालाब की रक्षा करने वाली फौजी टुकड़ी रहती थी। देशी-विदेशी शत्रुओं से घिरे इस तालाब की सुरक्षा का भी पक्का प्रबंध था क्योंकि यह पूरे शहर को पानी देता था।

मरुभूमि में पानी कितना भी कम बरसता हो, घड़सीसर का आगोर अपने मूल रूप में इतना बड़ा था कि वह वहां बरसने वाली एक-एक बूंद को समेट कर तालाब को लबालब भर देता था। घड़सीसर के सामने पहाड़ पर बने ऊंचे किले पर चढ़ कर देखें या नीचे आगोर में पैदल घूमें, बार-बार समझाए जाने पर भी इस तालाब में पानी लाने का पूरा रजत बूंदें प्रबंध आसानी से समझ में नहीं आता। दूर क्षितिज तक से इसमें पानी आता था। विशाल