पृष्ठ:Rajasthan Ki Rajat Boondein (Hindi).pdf/१०३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।


देख सके थे। उस बावड़ी की सीढ़ियों पर खड़े होकर हम जान सके कि आंखें फटी रह जाने का अर्थ क्या है। इस पुस्तक का मुखपृष्ठ इसी बावड़ी के चित्र से बनाया है। इसे गांधी शांति केंद्र, हैदराबाद और गांधी शांति प्रतिष्ठान ने एक पोस्टर की तरह भी छापा है। श्री शरद जोशी ने राजस्थान के अनेक शहरों में बनी और अब प्राय: सब जगह उजड़ रही बावड़ियों की जानकारी भी उपलब्ध करवाई। राष्ट्रदूत साप्ताहिक के १८ जून, १९८९ के अंक में श्री अशोक आत्रेय ने राजस्थान की बावड़ियों की लंबी सूची दी है। राष्ट्रदूत साप्ताहिक का पता है: सुधर्मा, एम. आई. रोड, जयपुर।

पिंजरों चड़स, लाव और बरत से संबंधित अधिकांश सूचनाएं हमें श्री दीनदयाल ओझा से मिली हैं। बारियों को समाज से मिलने वाले सम्मान की जानकारी श्री नारायणसिंह परिहार ने दी है। उनका पता है: पो. भीनासर, बीकानेर। सुंडिया की जानकारी हमें जैसलमेर के बड़ा बाग में काम कर रहे श्री मचाराम से मिली है।

१०१
राजस्थान की
रजत बूंदें
सारण पर चड़स खींचने वाले बैल या ऊंटों की थकान का भी ध्यान रखा जाता था। मूण के साथ एक और छोटी धिरी जोड़ी जाती थी, जिस पर एक लंबा डोरा बंधा रहता था। बैलों की हर बारी के साथ यह डोरा लिपटता जाता था। पूरा डोरा लपट जाने से बैल जोड़ी को बदल देने की सूचना मिल जाती थी। पशुओं तक की थकान की इतनी चिंता रखने वाली यह पद्धति अब शायद चलन से उठ गई है। फिर भी पुराने शब्दकोशों में यह डोरा नाम से मिलती है। पहली जानकारी हमें जयपुर के श्री रमेश थानवी ने दी थी। फिर इनकी बारीकियों में उतारा श्री मुरारी लाल थानवी ने। उनके पिता श्री शिवरतन थानवी ने सेठ सांगीदास परिवार के पुराने किस्से बताए। थानवी परिवार का पता है: मोची गली, फलोदी, जिला जोधपुर। उत्कृष्ट गजधरों ने जिस कुएं को वरसीं पहले पत्थरों पर उतारा था, उसे कागज़ पर उतारने में अच्छे-अच्छे वास्तुकारों को आज भी पसीना आ जाता है। कुएं का प्रारंभिक नक्शा बनाने में हमें दिल्ली के वास्तुकार श्री अनुकूल मिश्र से सहायता मिली है। बीकानेर के भव्य चौतीना की से मिली है। शहर में इस दर्जे के और भी कुएं हैं। ये सभी पिछले २००-२५० बरस से मीठा पानी दे रहे हैं। प्राय: सब इतने बड़े हैं कि उनके नाम पर ही पूरा मोहल्ला जाना जाता है। मरुभूमि में कुओं से सिंचित क्षेत्र भी काफी रहे हैं। १७वीं सदी के इतिहासकार नैणसी मुहणोत ने अपनी ख्यात में जगह-जगह कुओं की स्थिति पर प्रकाश डाला है। गांव की रेख यानी सीमा में पानी की गिनती और पानी कहां कितना गहरा था, इसकी भी जानकारी मिलती है। 'परगना री विगत" नामक उनके ग्रंथ में सन् १६५८ से १६६२ तक जोधपुर राज्य के विभिन्न परगनों की सूचनाएं हैं। इस विषय पर अलीगढ़ विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के प्राध्यापक श्री भंवर भादानी ने काफी काम किया