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इस प्रयोग पर ये प्रश्न पूछा जा सकता है कि फ्रिंजों में विस्थापन प्रेक्षण के लिए ये भुजायें बहुत छोटी हैं। लेकिन माइकलसन ने मोरले Morley के साथ प्रयोग को बड़े स्तर पर दोहराया।[१] प्रकाश किरणें आगे और पिछे परस्पर प्रसामान्य दिशाओं में कई बार चलती रही क्योंकि वो हर बार दर्पण से परावर्तित हुई। उपकरण को एक पत्थर पर रखा गया गया था, जो पूरा पारे के में रखा गया था और इसे क्षेतिज दिशा में घुमाया जा सकता था। हालांकि फ्रेनल के सिद्धान्त के लिए आवश्यक परिवर्तन देखने में प्रयोग असफल रहा।
मैंने इस प्रयोग के परिणामों को समझने की लम्बे समय तक कोशिश की लेकिन कोई सफलता रहित ही रहा और अंततः मुझे फ्रेनल के सिद्धान्त को स्वीकार करने का एक ही तरिका मिला। इसमें यह मानना पड़ा कि ठोस निकाय के दो बिन्दुओं को जोड़ने वाली रेखा जब पृथ्वी की गति की दिशा में और इसके प्रसामान्य अवस्था में रखी जाती है तो वह रेखा अपनी लम्बाई को सरंक्षित नहीं रखती है। यदि बाद वाली स्थिति में इसकी लम्बाई है और पहली स्थिति में यह है तो व्यंजक (1) और (2) को से गुणा करना पड़ता है। को छोड़ने पर
अतः
लिखकर व्यंजक (2) का अन्तर इसे समझा जा सकता है।
माइकलसन के पहले प्रयोग में भुजाओं की लम्बाई में ऐसे परिवर्तन और दूसरे में ठोस निकाय के आकार में परिवर्तन मुझे वास्तव में अकल्पनीय नहीं दिखाई देता।
वास्तव में ठोस निकाय के आकार और रूप को क्या निर्धारित करता है? आभासी तौर पर आण्विक बलों की तीव्रता को किसी भी कारण से संशोधित किया जा सके, तो यह उसी रूप में इसके आकार और रूप को बदल सकता है। अब हम अभी के लिए मान लेते हैं है कि विद्युत् और चुम्बकीय बल ईथर के प्रभाव में अलग व्यवहार दिखाते है। इसी तरह आण्विक बलों के लिए भी यह मानना
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