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मन्थावली ] [ ८५३ जन्म व्यर्थ ही व्यतीत हुआ जा रहा है। तू राम का भजन कर (जिससे तेरा कल्याण हो।) अलकार--(1) गूढोक्ति-कहा... बात। (1) वक्रोक्ति-कहा ले आयो • त । (111) उपमा-ज्यू बनि हरियल पात । (iv) दृष्टान्त-रावण विहात । विशेष- (1) ससार और उसके सम्बन्धो की असारता का प्रतिपादन है। (II) जीवन की क्षण भगुरता की व्यजना है। (111) 'निर्वेद' एव वैराग्य की अभिव्यक्ति है। नर पछिताहुगे अधा। चेति देखि नर जमपुरी जैहै, क्यू बिसरौ गोब्यंदा ॥ टेक ॥ गरम कुडिनल जब तू बसता, उरध ध्यान ल्यौ लाया । उरध ध्यान मृत मडलि आया, नरहरि नांव भुलाया ।। बाल बिनोद छह रस भीनां, छित्त छिन मोह बियाप । बिष अंमृत पहिचानन लागौ पांच भांति रस चाखै ॥ तरन तेज पर त्रिय मुख जोवै, सर अपसर नहीं जाने । अति उदमादि महामद मातौ, पाप पु नि न पिछांनै ।। प्यंडर केस कुसुस भये धौला, सेत पलटि गई वांनी । गया क्रोष मन भया जु पावस, काम पियास मदांनीं ॥ तूटी गांठि दया धरम उपज्या, काया कवल कुमिलांनां । भरती बेर बिसूरन लागौ, फिरि पीछे पछिलांनां ।। कहै कबीर सुन रे संतो, धन माया कछू संगिन गया । आई तलब गोपाल राइ की, धरती सेन भया । शब्दार्थ-उरध ध्यान-ऊपर को ध्यान, भगवान मे ध्यान । मतमडलिमृत्यु-लोक । तरण तारुण्य, जवानी । सर अदसर =अवसर कुअवसर । प्यडर = पाडुर- भूरा । पावस=आदि, दया धर्म की बात करने लगा। गाँठ =अह कार की गाँठ । विसूरन-वेदना से दुखी । मदानी - मद पड गई। सन्दर्भ-पूर्व पद के समान । भावार्थ- अरे अधे मनुष्य, अपने इन कर्मों के फल स्वरूप तुझको अन्त मे पछताना पडेगा । तू सचेत होकर देख । तुझको यम पुरी जाना है । तुम गोविन्द को क्यो भूल गये हो ? जब तुम गर्म कुण्ड मे थे तव तुमने (उसके कष्टो से त्राण पाने के लिए) भगवान मे ध्यान लगाया। फल स्वरूप तुम उससे निकलकर इस मृत्यु लोक मे आ गए। यहाँ आकर तुमने हे मानव फिर हरि का नाम (अथवा नृसिंह भगवान को) भुला दिया है । बाल्यावस्था में क्रीडाएँ करते हुए तुमने छओ रसो के