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प्रन्यावली ] [८२९
जहाँ जहाँ जाइ तहां सच पावै, माया ताहि न झोलै । बारंबार बरजि विषिया तै, लै नर जौ मन तौल ॥ ऐसी जे उपजै या जीय कै, कुटिल गांठि सब खोलै। कहै कबीर जब मन परचौ भयौ, रहै रांम कै बोलै॥ शब्दार्थ-डोलै=विचलित हो। सच=सुख ।भ्कोलै=जलाती है ।सताती है । तोलै=सयमित करता है ।रहे =आचरण करता है ।बोलै=आदेशानुसार । सन्दर्भ-कबीर कहते है कि सच्चा भक्त वही है जो राम के आदेशानुसार आचरण करे । भावर्थ-जिसका ह्र्दय भगवान के चरणो मे लग। हुअ है, उस्का मन चचल नही होता है । उसे तो आठो सिध्दियाँ और नवो निधियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती है और वह व्यक्ति हर्षित हो-हो कर प्रभु का गुणगान करता है । वह जहाँ भी जाता है। वहाँ अमित सूख-शाति का लाभ प्राप्त करता है । माया उसको सता नही पाती है । जिस व्यक्ति के ह्रुदय मे ऐसी श्रध्दा-भक्ति उत्पत्र हो जाती है कि वह विषयों से अपने मन को बारम्बार विमुख करके जो अपने मन को नियत्रित करके प्रभु भक्ति मे लगा देता है, वह माया जन्य समस्त जटिल गुत्यियो को सहज ही सुलभ्काने मे समर्य होता है । कबीर कहते है कि जब इस प्रभु-प्रेम से मन का परिचय हो जाता है, तब वह राम के आदेशानुसार ही आचरण करता है । अलंकार -(।) पुनरुत्कि प्रकाश - जहाँ जहाँ । (॥)अनुप्रास -बारबार बरजि विषया । विशेष्-(।) ससार से विमुख होकर प्रभु के नाम पर समस्त कार्य करना, स्वार्थ त्याग कर पारमार्थिक व्यवहार करना ही राम के आदेशानुसार आचरण करना है । गोस्वामी तुलसीदास ने भी 'विनय पत्रिका'मे कहा है कि- तुम अपनायो तब जानिहो जब मन फिरि परिहै । जेहि स्वभाव विषयनि लग्यो तेहि सहज नाय सों नेह छौडि छल करि है । (॥)आठ सिध्दि, नव निधि - देखें टिप्पणी पद स० १२३ । (॥।)जब भक्त का मन पूर्णत सयमित हो जाता है तभी भक्ति एवं प्रेम हढ होते है । सच्चे भक्त का यही लक्षण है । (।v)कबीर के राम दशरथि सगुण राम नही है । निराकार निगुर्ण व्रहा है । वह पुकार कर चुके है । दशरथ सूत तिह्ँ लोक बखाना । राम -नाम का मरम न जाना । (३७३) जंगल मै का सोवनां, औघट है घाटा ॥ स्यंघ बाघ गज डाजलै, अरु लबी बाटा ॥टेका । निस बासुरि पेडा पडै, जमदांनी लूटै । सूर धीर साचै मतै, सोई जन छूटै ॥