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ग्रन्थावली

   शब्दार्थ-आतुर=व्याकुलता । जन=भक्त ।
   सन्दर्भ-कबीरदास भक्त के लक्षणो का वर्णन करते हैं ।
   भावार्थ-राम का भजन करने वाला वही सच्चा भक्त माना जाता है जिसके 
 मन मे प्रभु कृपा के लिए व्याकुलता नही होती है। वह सदैव सत्य और संतोष
 धारण किए रहता है और वह मन मे धैर्य धारण करता है अर्थात विपत्ति के समय विचलित नही होता है ।भक्त को काम और क्रोध नही सताते है और उसको तृष्णा (भोगेच्छा) जलाती (उद्वेलित) नही करती है। वह सदैव आनन्द मग्न रह कर प्रफुल्लित दिखाई देता है और गोविंद का गुणगान करता रहता है। भक्त को कभी किसी की निंन्दा करना अच्छा नही लगता है और वह कभी असत्य भाषण नही करता है (कभी झूठ नही बोलता है) । वह काल की कल्पना मिटाकर अनन्त मे निवास करता है ओर भगवान के चरणार्विन्द मे चित्त लगाये रहता है। वह सुख-दुख,हानि-लाभ,जय-पराजय आदि के प्रति समान भाव रखता है और अपने मन को सदैव शांत रखता है। उसके मन मे किसी प्रकार का संदेह नही रहता है--वह आश्वस्त रहता है कि प्रभु भक्ति के पथ पर चल कर ही उसका कल्याण सम्भव है। कबीरदास कहते है कि इतने लक्षणो से युक्त्त भक्त के प्रति मेरे हृदय मे प्रेम और श्रद्धा का भाव रहता है।
        अलंकार--(१) छेकानुप्रास--सत संतोष,अरु असति चरन् चित ।
                (११) वृत्यानुप्रास--व्यद गुण गावै। मेरा मन मानै ।
                 (१११) परिकराकुर की व्यजना--गोव्यद ।
        विशेष--(१)काल कल्पना--भूत,और भविष्य की चर्चा काल कल्पना है।
        सदैव वर्तमान मे निवास करना ही काल-कल्पना को मिटाना है। वर्तमान को
        क्षुरस्य धारा है। इसमे स्थिर रहना ही काल पर विजय करना है।
             (११)तुल्नात्मक अध्ययन के लिए देखें।--
             (क)दैवी सपदा प्राप्त पुरुष के लक्षण देखें--
                       अभयं सत्त्वसंशुद्धि जनि योग व्यवस्थित ।
                       दानै दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम् ।
                       अहिंसा सत्यम क्रोधस्त्याग शातिरपैशुनम् ।
                       दया भुतेष्व लोलुप्त्वं मारवं हरि खापलम् ।
                                          इत्यादि (श्रीमद्भगवद्गीता--१६।१-४)