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कबीर की साखी
 

शब्दार्थ-साचा=सच्चा।सूरिर्वा=शूरमा।सवद=शब्द वायह =वहाया,फॅका । लगते। पडयाा=पडा-हुआ। छेक प्रभाव डालना।

 
सतगुरु मारया बाण भरि धरि करिसूधी मूठि।
श्रंगि उघाडै लागिया,गई दवा सूँ फूटि़॥८॥

संदर्भ-- प्रस्तुत साखी मे कवि ने विगत साखो के भाव को अधिक विस्तार के साथ व्यक्त किया है। विगत साखी मे कवि ने सतगुरु के शूरत्व तथा प्रभावशाली व्यक्तित्व का उल्लेख किया है़। यहाँ उसी भाव का विश्नेषण करते हुए कबीर ने शब्द वाण के तीत्र्व एवं व्यापक प्रभाव को अंकित किया है़।

भावार्थ-- सतगुरु ने शक्तिभर शिष्य को लक्ष्य करके वाण मारा। फलता शिष्य के शरीर मे दावाग्नि भी प्ररफुटित हो गई और शिष्य के अगो को उदघाटित करने लगा।

विशेष--(१) मार्या वाण भरि से तात्पयं यह है कि सतगुरु ने पूर्ण्शक्ति के साथ वाण मारा। (२) घरि--मूठि-ल साघन करके। (३) अगि- लागिया सातगुरु के शऱीर वाणो ने शिषय के अगो को ‌उदघाटित कर दिया। अर्थात शब्द वारगा ने ममं को आहन कर दिय। (४) गई-फूटि-शब्द वाण के फलतः ज्ञान कि अग्नि दावाग्नि से फैल गई औऱ उसने व्यक्तित्व के असर तत्वो की विनष्ट कर दिया।

शब्दार्थ'-भरी पुरी शक्ति के साथ। सूघी= सूघे। दवा=दावाग्नि।

 
हँसै न बोलै उन्मनी चंचल मेहल्या मारि।
कहै कबीर भीतरि भिद्य,सतगुरु कै हथियारि॥८॥

संदर्भ-- सतगुरु ने पूरी शक्ति के साथ शब्द-वाण को शिष्य के प्रति मारा अौर फलतः प्रम या जान को अग्नि शिष्य के सम्पूर्ण शऱीर मे प्रस्फुतटित हो गई। प्रस्तुत साखी मे कवि ने शब्द वर्ण के प्रभाव को स्पप्ट एवं अधिक विस्तार के साथ प्रकट किया है। शब्द वाण का प्रभाव यह पडा, कि शिष्य उन्मन अवस्या मे प्रविष्ट हो गया और उसका चचल मन पगु या गति-विहीन हो गया।

भवार्थ--शब्द वाण रुपी सतगुरु के हथियार ने शिष्य के अन्तस य मर्म को गई कर दिया। अब वह् हपं-विपाद की मानव से परै होकर संसार से उन्म या उटामीन हो गया और उसका चचंल मन प्रवान्त हो गया।

विशेष-- (१)"हसे न बोले" शिष्य शब्द वाण लगते ही शिष्य संसारिक भवनाओ और प्रतिक्रियाओ से ऊपर उठ गया। वह बोतराग य समार की यतर्थ स्यिति को भली प्रकार समान गया और वह संसार से विमुक्त हो उठा, (२) 'उनमनी' से तात्पर्य है उदामिन। (३) 'चचंल' शब्द का प्रयोग संत साहित्य् में में मन के लिये