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य्रन्थवली ] हैं, जिनके दरबार मे करोडों यज्ञ होते रह्ते हैं तथा करोडों गधर्व जिनका जय-जय- कार करते हैं। करोडों विधाता जिनका गुणगान करते रहते हैं, उस परम ब्रह्म का किसी ने भी पार नहीं पाया है। उनके लिए करोडों शेष नागों ने सेज बिछा रखी है। और करोडो पवन उनके महल में हवा करते हैं करोडो समुद्र उनके यहाँ पानी भरने वाले हैं, अठारह वनराजी जिनकी रोमावली हैं, जिसके असख्य करोड यमों की सेना है, जिनसे रावण की सेना भी पराजित हुई है, जिसने सहस्त्रबाहु के प्राणों का हरण किया था, और दुर्योधन, को जिसने क्षयमान करके नष्ट कर डाला था, बावन करोड जिसके कोटपाल है और नगरी-नगरी में जिसके क्षेत्रपाल है जिनकी विकराल लटें (मेघों के रूप में) भयंकर न्र्त्य करती हैं। वह राम अनन्त कला से युक्त नटवर गोपाल हैं, करोड कामदेव उनका सोन्दयं प्रसाधन करते हैं और उसी से घट-घट मे रहने वाली इच्छाओं को अपनी ओर आकृष्ट करते हैं। कबीरदास उन्ही धनुदषधारी राम का भजन करते हैं और उनसे अभय पद के दान की याचना करते हैं।

    अलंकार-(१) व्यक्तिरेक एव आतिशयोक्ती- पूरा पद।
    विशेष- यह सगुण भक्तों की सी प्रार्थना है। इसमे प्रभु के विराट-दर्शन 

जैसी झाँकी प्राप्त होती है।

    (११) समभाव के लिए देखें-
               रुद्रादित्या वसवोयेच साध्या।
               विश्वेश्विने मरुतञ्चोहम पाश्च।
               गन्धर्व यक्षासुर सिद्ध सँघा।
               वीक्षन्ते त्वां विस्मिताञ्चव सर्वे।    (श्रिरमद्भगवद्गीता)
               
    उदर माझ सुनु अंडज राया। देखेउ ब्रह्माड निकाया।
    अति विचित्र तहँ लोक अनेका। रचना अधिक एकते एका।
    कोटिन्ह चतुरानन गौरीसा। अगनित मधुर राम बिसाला।
    सागर सरि सर विपिन अपारा। नाना भाँति सृष्टि विस्तारा।
                                   इत्यादि (रामचरितमानस)

जाके विलोकत लोकप होत विलोक, लहैं सुर-लोग सु-ठौरहि। सो कमला तजि चंचलता करि कोटि कला, रिझवै सुर मौरहि। ता को कहाय, कहै तुलसी, तू लजाहि न माँगत कूकुर-कौरहि। जानकी जीवन को जन है जरि जाऊ सो जीह, जो जाँचत औरहि।

तथा-जग जाचिए कोउ न जाँचिए जो जिय जाँचिए जानकी जान्हि रे।

जेहि जाँचत जाचकता जरि जाहि जेहि भारत जोरि जहाँ नहिरे।
                                (कवितावली- गोस्वामी तौलसीदास)