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हिमकति कैर हलाल बिचारै,आप कहांवै मोटे।
चाकरी चोर निवालै हाजिर,सांई सेती खोटे॥ दांइम दूवा कम्द बजावै,मै क्या करूॱ भिखारी। कहै कबीर मैं बंदा तेरा,खालिक पनह तुम्हारी॥ शब्दार्थ--पीर=मुसलमानो के धर्म गुरु,धर्मगुरु। पैकंवर=पैगबर-पैगामवर,ईश्वर का दूत (मुहम्मद साहब)।गदे=गदा (फारसी),भिखारी,रंक निर्धन। दरिया=नदी। कमिबखत=दुर्भाग्य। हिकमति=चिकित्सा,युक्तियाँ। हलाल=पशु हिंसा। मोटे=बडे। निवालै=भोजन के समय। साई=स्वामी। सेती=से,प्रति।खोटे=बुराई करने वाले। दाइम=दामन(अरबी शब्द),सदैव,उम्रभर। दूवा=छूरी,चाकू। दूवा=दुआ। बदा=सेवक। खालिक=सुर्ष्टिकर्ता। संदर्ब--कबीरदास भगवान से शरणगति की प्रार्थना करते हैं। भावार्थ--हे भगवान तू पवित्र और परमानंद स्वरुप हो।धर्मगुरु और मोहम्मद साहब जैसे तेरे सदेश-वाहक भी जब तेरी शरण मे रहते है,तब मुझ गरीब भिखारी की तो गिनती ही क्या है? हे प्यारे परमानंद,तुम दया की नदी स्वरुप होकर हृदय मे निवास करते हो। यह मेरा कैसा दुर्भाग्य है कि मेरे ऊपर आपको जरा भी दया दृष्टी नही है। लोग दूसरो को उद्धार की युक्तियाँ बताते हैं और स्वयं हृदय मे हिंसा धारण करते है। ऐसे ही व्यक्ति बडे कहे जाते हैं। व्यक्ति भगवान की सेवा से जी चुराते हैं,अर्थात कर्तव्य का पालन ठीक तरह से नही करते है परन्तु भोजन के समय सदैव प्रस्तुत दिखाई देते हैं और इस प्रकार स्वामी के प्रति सदोप व्यवहार करते हैं। ये लोग उम्र भर दुआ मागते हैं और छुरी चलाते हैं (हिंसा करते हैं । इन्ही का सम्मान हॊता है)। इन लोगो पर मुझ भिखारी का क्या वश चल सकता हैॽ कबीरदास कहते हैं कि मैं तो सेवक हूँ । हे सृजन हार,मैं तुम्हारी शरण मे हूँ-मेरे ऊपर अनुग्रह कर दीजिए। अलंकार--(1) अनुप्रास--पीक पैकंवर पनह । (11) छेकानुप्रास--पाक परमानन्दे, दरिया दिल, चाकरी चोर साईं सेती, दांइम दूबा, हिकमति हलाल । (111)वक्रोक्ति---मैं ॱॱॱॱॱॱ गदे ॽ (V) श्लेष पुष्ट रूपक ॱॱॱॱॱॱॱ दरिया । (1V) गुढ़ोक्ति--- क्या हमारे । (V1) विषम--चाकरीॱॱॱॱॱॱ उजावै । विशेष---(1) धर्म के ठेकेदारों के प्रति करारा व्यंग्य है। (11) इस पद में कबीर ने काजी-मुल्लाओं के माँस भक्षण के प्रति अपना आक्रोश व्यक्त किया है। (111) फारसी-अरबी के शब्दों के प्रयोग ने भावाभिव्यक्ति को सर्वथा स्वाभाविक बना दिया है ।