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  शब्दार्थ- विष= काम वासना का जहर। अजन= माया, विपयासत्कि।

राती=प्रेमिका । खाडी= खडी हूँ । अथव खाडी क अर्थ रमणी । पतीजौ विश्वास।पटबर= रेशमी वस्त्र । पाट= रेशमी वस्त्र । रिसालू=अप्रसत्र हो जएगा ।

  सन्दर्भ- कबीर माया को दुत्कारते हैं ।
  भावार्थ- कबीर माया को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि, रे बहिन, तुम अपने घर जाओ । तुम्हारे नेत्र मुझे जहर मालूम होते हैं (अर्थात् तुम्हारी ओर देखते मुझे डर लगता है) । मैंने तो सासारिकता का त्याग करके माया से रहित निरजन परमतत्व के प्रति अनुराग कर लिया है । अब मुझे किसी से कुछ लेना-देना नहीं है । मैं तो उसकी सूझ-बूझ पर बलिहारी जाता हूँ जिसने तुमको मुझे अपनी ओर आकर्षित करने के लिए भेजा है । तुम तो मेरी माता और बहिन के समान हो । (शरीर को बनाने वाली होने के कारण माया जीव की माता है तथा निर्माता ईश्वर की पुत्री होने के कारण माया जीव की बहिन है ।" माया कबीर को उत्तर देती हुई कहती है कि,"हे कबीर देखो तो सही । मैं तुम पर आसत्क नारी की भाँति खडी हूँ । तुम मेरे क्षूगार की ओर तो देखो मैं कबीर को पति रूप मे वरण करने के लिए स्वर्ग लोक से चलकर यहाँ आई हूँ ।" कबीर कहते हैं "वहां स्वर्ग लोक मे तुम्हारे ऊपर ऐसी क्या विपत्ति आ पडी जो तुम यहाँ मृत्यु लोक मे आ गई हो । मेरे पास क्या रखा है ? मैं जाति का जुलाहा हूँ । मेरा नाम कबीर (बुजुर्ग बुड्दा) है। अब तो तुझको मेरी तुच्छता एव असमर्थता पर विश्वास हो जाना चाहिए । तुम उनके पास जाओ जो रेशमी वस्त्र धारण करते हैं और अगर तथा घिसे हुए चन्दन का लेप करते हैं । हमारे याहाँ आकर तुम क्या करोगी ? हम तो एक बहुत ही निम्न जाति मे उत्पत्र जुलाहे हैं । जिन भगवान ने हमको बनाया है और इस सुन्दर स्वरूप द्वारा सजाया है उन्होने मुझको अपने प्रेम के डोरे मे बाध लिया है । तुम कितना भी प्रयत्न करो, परन्तु मेरे मन मे तुम्हारे प्रति आसत्कि उत्पन्न नहीं होगी । पानी में आग नहीं लग सकती है ? मेरा स्वामी जब मुझ से मेरे कार्यों का हिसाब-किताब मागेगा, तब मैं उनको क्या हिसाब दे सकूँगा । मुझे आकर्षित करने के लिए कुछ भी करो, परन्तु मैं तुम्हारे प्रति कभी भी आकर्षित नहीं हो सकूँगा । क्योंकि पानी के द्वारा पत्थर कभी भी गीला नहीं हो सकता है । मैं भगवान की मछली हूँ, भगवान ही मुझको पकडने वाला मछवा है और वह मेरा रक्षक भी है । अगर मैं रच मात्र भी तुम्हारा स्पर्क्ष् कर लूँ तो राजा राम मुझ से अप्रसन्न हो जाऐगे । कबीर कहते हैं कि मैं जाति का जुलाहा हूँ । मेरा नाम कबीर है । मैं संसार से विमुख होकर जगलों में मारा-मारा घूमता हूँ । (अथार्त् जीवन के विभिन्न क्षेत्रों मे विषयों से उदासीन होकर घूम रहा हूँ । तुम आस-पास से हटकर दूर बैठो । एक तो तुम मेरी माता (शरीर के नाते) हो और ऊपर से सगी माता के समान होने के कारण मेरी मौसी हो । 
          अलंकार- (१)  पद मँत्री- अजन निरजन ।