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[कबीर ६८८] राम सो खरो है कौन मोसो कौन खोटो। (गोस्वामी तुलसीदास) (111) लहग दरिया-ब्रह्मणड मे से स्रवित रस धारा को चर्वी का दरिया कहना युक्ति समत ही है। एव- हें वृति विदित उपाय सकल सुर, केहि केहि दीन निहीरै। (२५९) अलह रांम जीऊँ तेरे नाँई, बदे ऊपरि सिहर करौ मेरे सांई । टेक ॥ बधा ले माटी भुँइ सूं मारै, दया जल देह न्हवायें। जोर करै मसकीन सतावै, गु न ही रहे छिपाये॥ क्या तु जू जर मजन कीये, वया मसीति सिर नांयें। रोजा करै निमाज गुजा वया हज काबे जांयें॥ ब्रह्मणं ग्यारसि करै चौबीसों, काजी महरम जांन। ग्यारह मास जुदे क्यू कीये, एकहि मांहि समांन॥ जौर चुदाइ मसौसि बसत है, और मुलिक किस केरा। तीरथ मूरति रांम निवाला, दुहु मैं किनहू न हेरा ॥ पूरिव दिसा हरी का वासा, पछिम अलह मुकांमा। दिल ही खोजि दिलै दिल भीतरि, इहां रांम रहिंमांनां॥ जेती औरति मरदां कहिये, सब मै रूप तुम्हारा। कबीर पगुड़ा अलह रांम का, हरि गुर पीर हमारा॥ शब्दार्य- नाई =नाम पर । वदे=सेवक पर, दास पर । मिहर=मेहर वानी । नई= स्वामी । मिट्टी=शरीर मु इ सू मारैध्दज़मीन पर पटका जाए। जो? करै खुणा मसकीन=, ' दु खी ४ मज़न=मज्यन, शरीर की मौ'यांदृ'झ शुद्धि के लिए मम पटले हए कुशाबि से जल छिडफना । मसौति ध्वमस्तिर्द दृदृब्ब=- दृइदृ'झ, नियन कान पां काबे ठे दर्शन और प्राक्षिण करना, मक्रफे की यात्रा । ऱस्याध्दम'उरे की एक चौकोर इभारक्त णिद्रदृसौ नीव झान्हींम की रखी हूई भानी मणी ईद । ममूम्भ= कूद्धरेंन मूदृदृनमानो गाल का पहला महीना जिताने दरुम्भी शा'श्म नि त्मामहुंनैग शहीद हुए थे| मुलिक= मुल्क, ससार | हेरा| पगुड़ा=राम नेवक|