चोखी वनज व्यीपार करीजे, आइने दिसावरि रे राम जपि लाहौ लीजै ॥ टेक॥
जब लग देखौं हाट पसारा,
उठि मन वणियो रे, करि ले बणज सवारा॥
वेगे हो तुम्ह लाद लक्षांनां,
अॊघट घाटा रे चलनां दूरि पयांनां।
खरा न खोटा नां परखानां,
लाहे कारनि रे सब मूल हिरांनां॥
सबल दुनी मै लोभ पियारा,
मूल ज राखै रे सोई बनिजारा॥
देस भला परिलोक बिरांनां,
जन दोइ चारि नरे पूछौ साध सयांनां॥
सायर तीर न वार न पारा,
कहि समझावै रे कबीर बणिजारा॥
शब्धार्थ-चोखो=चोखा,अच्छा,लाभकारी। वनज=वाणिज्य। दिसावरि =देसावर,विदेश। लोहा=लाभ। हाट=बाजार। सवारा=सिदोषि,जल्द ही। ओघट=अवघट=अटपटा। पयाना=प्रमाण, चलना,जाना।वेगे-शीघ्र ही। लोहे=लाभ। मूल=मूलघन,गाॉँठ की पूजी। हिराना=गवांना।खोगया, नषट हो गया।बनिजारा=वाणिज्य करने वाला। सयाना=चतुर। सायर=सागर। तीर=किनारा।
सन्दर्भ-कबीर केह्ते है कि इस संसार मे रह कर धर्मपूर्ण आचरण हो हित्कारि हे।