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३१२] [कबीर कि साखी

    भावार्थ--कबीर का कहना है की जो भी आत्मा रूपी सुन्दरी अपने प्रियतम के गुणों को न स्मरण्कर अन्य किसी का गुणानुवाद करती है उसके इस व्यभिचारमय आचरण पर उसका स्वामी प्रभू कभी भी उसे स्म्मान प्रदान नहीं करता है|
    
    शब्दातर्थ--भरतार=भर्ता, पति|
                    जे सुन्दरी सांई भजै, तजै आन की आंस|
                    ताहि न कबहूँ पर हरै, पलक न चाड़ैं पास||३||
सन्दर्भ--जो स्त्री अपने पति पर ही आश्रित रहती है उसका पति उसे पल भर के लिए भी नही छोडता है|
भावार्थ--जो आत्मा रूपी सुन्दरी अपने स्वामी का ही भजन करती है और किसी आशा छोड देती है उसका पति (पर्मातमा) उसे कभी नही छोडता है,अपने पास से पल भर के लिये भी दूर नही करता है।
   शब्दार्थ--परि हरै=छोड्ना|
                   इस मन को मौदा करौं, नान्हा करि करि पीसि|
                   तव सुख पावै सुन्दरी, ब्रह्म झलकै सीस ||४||

सन्दर्भ--संयम के द्वारा ही परमात्मा को प्राप्त किया जा सकता है|

भावार्थ--कबीरदास जी कहते है कि इस मन को संयम रूपी चक्की मे पीस-पीस कर इतना महीन कर दूंगा कि वह मैदा हो जाये| तभी आत्मा रूपी सुन्दरी सुख की प्राप्ति करेगी और उसके सिर ब्रह्म ज्योति झलक्ती रहेगी|
   शब्दार्थ--सुन्दरी=आत्मा रूपी सुन्दरी|
                   दरिया पार हिडोलना, मेल्या कंत भचाइ|
                   सोई नारि सुलषणी, नितप्रति झूलण् जाइ ||७६०||

सन्दर्भ--पतिव्रता वही है जो नित्यप्रति पति के साथ रहकर उसकी सेवा करे|
भावार्थ--संसार रूपी नदी के उस पार प्रभू का हिन्डोला है जिस पर उन्होने गलीचा बिछा रखा है| वही आत्मा रूपी नारी शुभ लकक्षणो वाली है जो नित्य प्रति उस प्रीयतम के हिंडोले पर झूलने जाती है।
  शब्दार्थ--मचाइ=मचान, गलीचा|
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