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[कबीर की साखी
 

प्रकार मुझे अपना शिष्य बनाकर कृपा करके इस संसार रुपी समुद्र के पार उतार कर उस पार समतल भूमि (मैदान) मे खढा कर देता।

शब्दार्थ--पिछानि =पह्चान ।

ऐसा कोई नाँ मिलै,राँम भगति का मीत।

तन मन सौपे मृग ज्यूँ,सुनै बधिक का गीत ॥३॥

सन्दर्भ--भक्ति की अनन्यता पर जोर देते हुए कबीरदास जी कह्ते कि---

भावार्थ--मुझे रामभक्ति से परिपूर्ण ऐसा कोई भी व्यकित(गुरु)नही मिला जो अपना तन और मन अर्थात् सर्वस्व ईश्वर को सौंप दे और निश्चिन्त हो जाय । जिस प्रकार मृग शिकारी का तन्त्रीनाद सुनते समये यह भी विचार नही करता की इससे मेरी मृत्यु भी हो सकती है उसी प्रकार वह ईश्वर भक्त भी सांसारिक हानि लाभ का विचार नही करता है।

विशेष--उपमा अलंकार ।


'ऐसा कोई नां मिलै,अपना घर देइ जराइ।'

पंचू लारिका पटिक करि,रहै राम ल्यौ जाइ॥४॥


संदर्भ-सांसारिक माया जाल और आकर्षणो को कोई विरले ही व्यक्ति छोङ पाते है।साधारण मनुष्य तो उसी मे लिप्त रह्ते है।


भावार्थ--मुझे ऐसा कोई भी व्यक्ति नही मिला जो इस संसार से इतना विरक्त हो जाय कि अपने घर द्वार तक को आग लगाकर भस्म कर सके और अपने पाँचो पुत्रो अर्थात् काम,क्रोध,मद,लोभ,मोह को पृथवी पर पटक कर समाप्त कर दे और ईश्वर के नाम स्मरण मे अपने को प्रवृत कर दे।


शब्दार्थ--पचू लरिका-पाँचो पुत्र अर्थात् काम,क्रोध,मद,लोभ,मोह।


ऐसा कोई नं मिलै,जासौं रहिए लागि ।

सब जग जलता देखिए, अपणीं अपणीं आगि ॥५॥

संदर्भ--संसार मे सभी व्यक्ति अपनी-अपनी चिन्ताओ से व्यथित है कोई भी चिन्ता रहित नही मिल पाता है।


भावार्थ--मुझे कोई भी व्यक्ति इस संसार मे ऐसा नही मिला जिससे मिलकर मैं प्रेम-पूर्ण व्यवहार कर सकूं।संसार के सभी प्राणी अपने-अपने कमों के अनुसार प्राप्त वेदनाओ मे व्यथित है। सभी चिन्ता की अग्नि मे भस्म हो रहे है।


विशेष--तुलना कीजिए--