यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भावार्थ--कबीर तो हरि के नाम पर न्योछावर है और रौई लोन का उसने उतारा किय। हे नाथ! जिस मार्ग पर तू प्राणी को ले जाता है, उस मार्ग से कौन विचलित कर सकता है शब्दर्थ्--नाव-नाम

                       कबीर करणीं क्या  करै,जे रांम न करै सहाइ।
                        जिहिं जिहिं  डाली पग धरै, सोई नवि नवि जाइ। सन्दर्भ--
           इश्वर को इचछा के बिना कोई कार्य नही सिद्ध होता है।

भावार्थ '-- कबीरदास कह्ते है, कि यदि राम सहायता न करे तो कोई कौन सा पुरुषार्थ सफल बना सकता है। जिस-जिस डाली पर पैर रखता हू वही भूक-भूक जाती है।

शब्दार्थ्--सहाई=सहायता।

                     जदि क माइ जनमियाँ,कहूँ न पाया सुख।
                     डाली डाली मै फिरौ, पातौ पातौ दुख॥११॥
 सन्दर्भ- जब से जन्म लिया, तब से सुख न मिला।

भावार्थ-- जब से जन्म लिया तब से सुख न मिला। सुख कि खोज मे मै डाली डाली फिरता हूँ, और देखता हूँ कि पत्ते-पत्ते पर दुख भरा हुआ है।

शब्दार्थ्--पातौ-पातौ=पत्ते-पत्ते मे।
          
                सांई सूं सब होत है,पन्दै थै कुछ नाहि।
                 राई थै परवत करै,परवत राई मांहि॥१२॥

सन्दर्भ -- सांई संसार का नियन्ता है। भवार्थ्--स्वामी संसार क नियन्ता है , बन्दे से कुछ नही होता है। वही राई को पर्वत और पर्वत को राई करता है।

शब्दर्थ्'-- बन्दे=मनुष्य।



                        ---------