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[ कबीर
 

विधाता ने इस बेडे (संसार-सागर से पार जाने के साधना) को बनाया है और उसका नाम 'राम-नाम' रख दिया है ।

अलंकारـــــ(¡)रूपक--भौसागर, भाव भेरा ।

(¡¡) रूपकातिशयोक्ति---भेरा साजि ।

(¡¡¡) उल्लेख-दु ख विश्राम ।

विशेष ــــــــــــــ(¡) राम-नाम की महिमा अपार है । कबीर का तात्पर्य दाशरथि राम से नही है, बल्कि उनका तात्पर्य परम ब्रह्म के गुणो से है ।

(ıı) यह नाम-माहात्म्य-वर्णन सगुण भक्तो जैसा है । यथाـــــــ

विश्वास एक राम-नाम को ।

मानस नहिं परितीति अनत ऐसोई सुभाव मन घाम को ।

पढिबो पर् यो न छठी, छ मत रिगु जजुर अयर्वन साम को ।

सब दिन सब लायक भव गायक रघुनायक गुन-गुरम को ।

बैठे नाम काम-तरु-तर-डर कौन छोर धन घाम को ।

को जानै को जैहै जमपुर, को सुरपुर परधाम को ।

तुलसिंहि बहुत भलो लागत जग जीवन राम गुलाम को ।

(गोस्वामी तुलसीदास)
 

(३६ )

जिनि यह भेरा दिढ़ करि गहिया, गये पार तिन्हौं सुख लहिया ।।

दुमनां है जिनि चित्त डुलावा, करि छिटके थे थाह न पावा ।।

इक दूबे अरु रहे उरवारा, ते जगि जरे न राखणहारा ।।

राखन की कछु जुगति न कीन्ही, राखणहार न पाया चीन्हीं ।।

जिनि चिन्हां ते निरमल अगा, जे अचीन्ह ते भये पतंगा ।।

रांम नांम क्यों लाइ करि, चित चेतन ह्वै जागि ।

कहै कबीर ते ऊबरे, जे रहे रांम ल्यौ लागि ॥

शब्दार्थــــــــभेरा==बेडा, राम-नाम का बेडा । दिढ करि=--दृढ़वापूर्वक । गहिया==, पकड रखा है । दुमना ह्वै==दुविधा गे पड कर । करि छिटकै== छूट गया । उरवारा==इसी पार । राखन-रक्षा ।

सन्दर्भـــــपूर्व पद के समान राम-नाम की महिमा का प्रतिपादन है ।

भावार्थـــــ जिन लोगों ने राम-नाम रूपी नाव को कसकर (दृढनिश्चय पूर्वक) पकड रखा है (विश्वास पूर्वक अवलम्बन ग्रहण कर लिया है ) वे भव-सागर के पार हो गये और उन्हें सुख की प्राप्ति हुई । द्विविधा में पड कर जिन्होने अपना चित्त डाँवाडोल कर दिया, उनका हाथ छूट जाता है (वे बीच में गिर पडते हैं) और उनको इस भवसागर की थाह नहीं मिलती है अर्थात् वे इसमे डूब जाते हैं । ऐसे व्यक्ति एक तो भवसागर में डूब जाते है और यहीं रह जाते है तथा संसारिक