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ग्रंथावली]
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यह जीव माया जनित अनेकानेक सासारिक प्रपचो मे अपने को भल गया हैा ये सासारिक बन्धन झूठे है,पर इन्होने सत्य स्वस्थ को आवृत्त कर लिया है। माया-मोह और धन-यौवन ने सब लोगो को बाँध रखा है। जीव को झूठ ही झूठ ने व्याप्त कार रखा है। कबीर कहते है कि इस कारण वह अलस्य सत्य स्वरूप भगवान के दर्शन नही कर पाता है।

अलंकार'’'- (।) विरोधाभास-- सबजान। बधे करम अबधू।

(।।) रूपक-- माया मोह लोह।

:विशेष'-- (।) चार प्रकार की सृष्टि--अण्डज, स्वेदज, उदिर्रज और जरायुज।

(।।) पच तत्व-- पृथ्वी,जल,तेज,वायु और आकाश।

"हस-देह' के धैर्य शील,विचार,दया और सत्य से ऋमश,आकाशादि पाच तत्व उत्पन्न हुए। ये बन्धन के हेतु बन गये। जीव मे इनसे अहंकार जाग गया। कबीर पंथ मे व्रह सच्चिदानद तक को बन्धन में माना गया है। इसी सिद्धांत का ऊपर सकेत है।

(।।।)विज्ञानमय जगत-- कारण-कार्य को नियम द्वारा संचालित होने के कारण यह जगत विज्ञानमय है। तटस्थ रुप से नियम लागू करने के कारण ही परमात्मा विज्ञानी है। तभी तो कहा है--

चातुवव्यं मया सूष्ट्ं गुण कर्म विभागरा।

तस्य कव्तारमपि मां विद्धयकर्त्ता रमव्ययमू। (श्रीमदूभगवदूगीता)

(।v) सब अयान जो आपै जान-- इस संसार मे तीन भ्रम सबको व्याप्त कर रहे हैं- देश,काल एव पृयकत्व। समस्त जीवन एक है अर्थात सबको एक ही चेतन तत्व व्याप्त किए हुए है। परन्तु हम अपने को पृथक समभते है तथा जगत् को मैं और मैं -- नही(तू) की दो भिन्न परिधियो मे रख कर देखते है। यह अज्ञान अथवा भ्रम है जो केवल अपने को ही जानता है तथा सम्पूर्ण विश्व एव उसके रचयिता को नही जानता,वह अज्ञानी है। अपने आपको शेष सूष्टि से पृथक करके देखने वाला निश्चय ही अज्ञानी है।

(१०)

झूठनि झूठ साच करि जांनां, झूठनि मै सब साच लुकानां॥ धंध बध कीन्ह बहुतेरा,क्रम बिबजित रहै न मेरा॥ षट दरसन आश्रम षट कीन्हां,षट रस खाटि काम रस लीन्हां॥ चारि बेद छह सास्त्र बखानै,बिध्या अनंत कथै को जांनै॥ तप तीरथ कीन्हे व्रत पूजा,धरम नेम दांन पुंन्य टूजा॥ और अगम कीन्है व्यौहारा,नहीं गमि सूझै बार न पारा॥ लीला करि करि भेख फिरावा,ओट बहुत कछू कहत न आवा॥ गहुन व्यंद कछू नही सूभै,आपन गोप भयौ आगम बूझै॥