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कुशल'''दीन्हा रे । वैभव लेकर भी व्यक्ति कुशल-पूर्वक बना

 रहे--यह नही होने का । देखिए --
     दुइ कि होइ एक समय भुआला । हंसब ठठाइ फुलाइव गाला।          
     दानि कहाइब अरु कृपनाइ । होइ कि खेम कुशल रौताइ । 
                                               (गोस्वामि तुलसिदास)
       दिवस रे' कहावत प्रचलित है -- " चार दिनो की चॉदनी फेरि
   अधेरी रात ।"
        सबहि पयानां कीन्हा रे -- समभाव की अभिव्यक्ति देखे --
      हाय दई ! यह काल के ख्याल में फूल से भूलि सवै कुम्हलाने ।
      देव-अदेव कली- बलहीन चले गये मोहि की हॉस हिलाने ।
      यो जग बीच बचे नहि मीच पै, जे उपजे ते मही में मिलाने।
      रूप-कुरूप-गुनी-निगुनी जे जहॉ जनमे ते तहॉ ही बिलाने।  (देव)