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प्रकार से उनकी अभिव्यंजना प्रतिभा भी प्रखर थी।अन्य सन्तो की वानियो मे कबीर की रचनाएँ मिलाकर रख दीजिए परन्तु विशिष्टता के कारण वे कबीर की रचनाएँ कहलाकर रहेगी। निम्नलिखित साखी से उनके व्यक्तित्व की किंचित थाह और अभिव्यंजना शक्ति का लेश परिचय मिल जायेगा ।

 खुली खेलो संसार में,बांधि न सकै कोय।
घाट जगाती क्या करे,सिर पर पोट न होय॥

यहाँ पर जिस पोठ की ओर कबीर का संकेत है वह दुष्कर्मों की पोठ है और खुली खेलो से तात्पर्य है सच्चाई या ईमानदारी का व्यवहार । कबीर ने उपनिषदो की परम्परा से ब्रह्म का वर्णन बड़ी सरल शैली मे किया है-

 जाके मुँह माथा ही नहीं रूपक रूप ।
पुहुपवास से पतला ऐसा तत अनूप॥

जाति पांति की निन्दा करते हुए बड़े सक्षेप मे कबीर ने तत्व की बात कह दी है-

एक बूंद एकै मलमूतर ,एक चाँम एक गूदा।
एक जाँति थे सब उतपना कौन बाहम्न कान सुदा॥

तथा

एकै पवन एक ही पानी एक जोति संसारा।
एक ही खाक घड़े सब भाँड,एक ही सिरजन हारा॥

ब्रहा,जीव ,माया आदि के रहस्यो को भी कबीर ने प्रभावशाली एवं स्पष्ट शैली मे व्यक्त कर दिया है। कबीर की अभिव्यंजना शक्ति बेजोड़ थी।

कबीर के काव्य मे बुद्धि तत्व की प्रधानता है। पाश्चात्य काव्य शास्त्रियो के अनुसार काव्य के लिए बौद्धिकता या बुद्धितत्व आवश्यक है। जिस रचना मे बुद्धि तत्व विद्यमान माना जाता है वह रचना स्यायो महत्व को प्राप्त करती है। ऊपर कहा जा चुका है कि कबीर के काव्य मे इस तत्व की प्रधानता है। कबीर का बुद्धि तत्व सरस तथा रोचक है उसमे शष्कता या नीरसता का स्पर्श नही होने पाया। निश्चय ही आत्मा,परमात्मा,जीव,जगत आदि नीरस विषय हैं परन्तु कबीर ने इन बौद्धिक समस्याओ का समाधान करने के लिए सरल भाषा,भावमयी अनुभूतियो तथा मधुर कल्पनादि का सहारा लिया है। बात यह है कि कबीर अपने प्रतिपाद्य को जनता के उस स्तर के लिए प्रस्तुत करने जा रह्ं थे जो निरक्षर था, अशिक्षित