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७५४ ] [कबीर
(11) ईशवर के असीम वैभव और अपनी अल्पता का मार्मिक उल्लेख है | इस उल्लेख के द्वारा साधक भगवान से क्रूपा की प्रार्थना करता हे कि वह उसे अपने निकट रखले | (३४०) जौ जाचौं तो केवल रामं, आंन देव सुं नांहो कांम् ||टेक|| जाकैसुरिज कोटि कर परकास, कोटि महादेव गिरि कविलास || ब्रह्मा कोटि बेद ऊचरे, दुर्गा कोटि जाकं मरदन करे || कोटि चंद्रमा गहै चिराक, सुर तेतीसूँ जीमै पाक || नौग्रह कोटि ठाढे दरबार, धरमराइ पौली प्रतिहार || कोटि कुबेर जाकै भरै भ्ंडार, लक्ष्मी कोटि करै सिगार | कोटि पाप पुनि व्यौहरै, इंद्र कोटि जाकी सेवा करै॥ जगि कोटि जकै दरबार,गध्रप कोटि करै जैकार॥ विय्धा कोटि सबै गँण कहैं, पारब्रह्म को पार न लहैं || बासिग कोटि सेज बिसतरै , पवन कोटि चौबरै फिरै || कोटि समुद्र जाकै पणिहारा,रोमाचली आठारह भारा ॥ अस्रखि कोटि जाक जमावली, रांवण सेन्यो जाथै कली || सहसवांह के हरे परांण, जरजोधन घाल्यौ खै मांन || बावन कोटि जाक कुटवाल, नगरी नगरी खेत्रपाल || लट धूटो खेलै बिकराल, अनत कला नटवर गोपाल || कंद्रप कोटि जाकै लांवन करै, घट घट भीतरि मनसा हरै || दास कबीर भजि सारगपान, देहु अभै पद मांगौं दांन || शब्दार्थ- चार्च = माँगता हुँ | चिराक= चिराग,दीपक | खैमान= क्षय- मान | कन्दप॔= कामदेव| लावण्य, प्रसाधन शाडग पाणी= धनुप धारण करने वाले, राम | सन्दर्भ- कविर अनन्त सामश्यवान् भगवान कि प्रार्थना करते हैं | भावर्थ- यदि में याचना करता हुँ, तो केवल राम से ही करता हु | अन्य देवताओ से मुझे कुछ भी लेना-देना नही है |उन राम के यहाँ करोडो सूर्य प्रकाश करते है, करोडो महादेव जिनके कैलास पव॔त पर रह्ते है, कोटि ब्रह्म जिसके यहाँ वेद-पाठ करते हैं, जिनकी आग्य से करोडो दुर्गा दुष्टो का दमन करती है, जिनके समक्ष करोडो चन्द्रमा दीपक लिये रहते है,तैतीस करोड देवता जिनकी क्रुपा का प्रसाद प्राप्त करते है, करोडो नवग्रह जिनके दरबार मे खडे रहते है, जिनके दरवाजे पर धमंराज प्रतिहारी का काम करते है, करोडो कुबेर जिनका भण्ठार भरते है, जिनको प्रमन्न करने के लिए करोडो लक्ष्मी श्रूगार करती है, करोडो पाप-पुण्य जिनके मकेत पर होते रहते है, करोडो इन्द्र जिनकी सेवा मे रहते