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[ कबीर
 

मूरखि मनिखा जनम गवाया,वर कौडी ज्यू डहकाया॥

जीहि तन धन जगत भुलाया,जग ऱाख्यो परहरि माया॥
जल अजुरो जीवन जैसा,ताका है किसा भरोसा॥
कहे कयोर जग धधा,काहे न चेतहु अघा॥

शब्दार्थ-व्यौहार सव=समस्त किया कलाप।मिथ्यावाद=नाशवान । हबूर=हिलोर,लहर।आपवाद=निदा। घाट=शरीर। काचा=काच्चा। भोली=मूर्ख जीवात्मा। ओली=विचित्र,अनोखी। घनेरी=गहरी। जल जन्त=जल जन्तु,जल के जीव। रेयल=देवायल,मन्दिर। धज=ध्वज। हाटिक=स्वण्र। मानिख=मनुष्य। विहाना=छोडकर। डहकाया=खो देता है। अजुरी=अजलि। ताका=उसका। गरिहठ=सम्मानित।

सन्दर्भ-कबीर जीवन और जगत की निस्सारता का वर्णन करते है।

भावार्थ-धन, संसार के धन्धें तथा समस्त किया कलाप मायारुप और नाशवान है। ये सब पानी मे उठने वाली लहर के समान क्षणिक है। भगवान के नाम के बिना ये समस्त पदार्थ निंदा के हेतु हैं। केवल राम नाम ही मूलत सत्य है। रे चतुर,तू अपने मे विचार करके देखले। यह शरीर कच्चे घड़े के समान है। रे भोली जीवात्मा। तू इस शरीर को सब कुछ समझने की भूल मत कर। यह भ्रम है। भगवान की लीला बड़ी ही विचित्र है। यह जीवित को मारने के लिए उद्यत रहती है। अथवा मार देती है तथा मरते हुए को जीवन-दान कर देती है। जिस जीव का यमराज के समान शत्रु हो अर्थात् जिसके सिर पर मृत्यु सदैव नाचती रहे, वह किस प्रकार निश्चिन्त होकर सो सकता है।जो जागते हुए भी नीद उत्पन्न करता है अर्थात् ज्ञान स्वरुप होते हुए भी अज्ञान द्वारा ग्रस्त रहता है,उसको सोते हुए से क्यो न जगाया जाए? अर्थात् अज्ञान द्वारा ग्रस्त प्राणियों को ज्ञान अवश्य दिया जाना चाहिए। गुरुज्ञान के द्वारा मोह निद्रा मे ग्रस्त युक्ति ज्ञान और देख पाता है और वे जन्तु इस को खा जाते है। उसी प्रकार सांसारिक व्यवहार के पीछे छिपे हुए नाश को प्राणी नही देख पाता है,और अन्ततः नाश होने पर संसार का मिथ्यात्व प्राणी की समस्त मे आता है। यह शरीर देवालय की भाँति अपने अंहकार रुप ध्वजा को फहराता रहता है। शरीर के पड़ने पर अर्थात् मृत्यु के समय केवल पश्चाताप मात्र ही शोष रह जाता है। अतएव व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने जीवन काल मे हि ज्ञान-भक्ति का कुछ आचरण करे। उसे राम रुपी रामायण का पान करना चाहिए। राम-नाम का स्मरण ही वास्तव मे सार तत्व है। माया मे फंस कर मनुष्य को अपना जीवन नहीं खोना चाहिए। सांसारिक वैभव एकत्र वालो को हमने अन्तकाल मे उस गठरी को अपने सिर पर ले जाते हुए नही देखा है।(सबको खाली हाथ ही जाते देखा है)।वलि, विक्रमादित्य भोज जैसे सम्मानित राजाओं मे से भी किसी को इस वैभव को साथ ले साथ ले जाते हुए