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य्रन्थावली] [६५२

                               (२५७)
                रे दिल खोजि दिलहर खोजि,नां परि परेसानी मांहि ।
                महल माल अजोज औरति,कोई दस्तगीरी क्यूं नांहि ॥टेक॥
                पीरां मुरीदां काजियां,मुलां अरु दरवेस ।
               कहाँ थै तुम्ह किनि कीये, अकलि है सब नेस ॥
                कुराना क्तेवां अस पढि पढि,फिकरि था नही जाइ ।
                टुक दम करारी जे करै, हाजिरां सूर खुदाइ ॥
                दरोगां बकि हुहिं खुसियो, बे अकलि बकहिं पुमांहिं।
                इक साच खालिक म्यानै, सो कछू सच सूरति मांहिं ॥
                अलह पाक तू,नापाक क्यू अब दूसर नांही कोइ ।
                कबीर करम करीम का,करनीं करै जांनै सोइ ॥
               शब्दायं--दिल हर=प्रियतम। सहर - शहर। माल=घन-दौलत। अज्ञीज 
  =अजीज,प्रियजन।