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सम्पूण कव्य का परायण कर जाने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारे आलोचक कवि ने मानव-जीवन को बहुत ही निकट से देखा था। मनुष्य की समर्थ्य,अभावो,हीनताओ से कबीर भली भांति परिचित थे। उनके वण्यं विषय विश्वास, धैर्य, मे औदार्य,दैन्य, शील,विवेक,संतोष विचर जैसी प्रवृत्तियो मानवीय भावो पर सविस्तारविचार प्रकट किए गए हैं। मनुष्य क्या है,कैसा है,उसका वास्तविक रुप कैसा है,इस सम्बन्ध मे कवि ने अपने विचारो को चेतावनी,भेष,कुसंग,माया,मन,कपट,तृष्णा,अह्ं,लोभ,परनिन्दा, भेदभाव,और असत्य आदिश शिषको मे व्यक्त किये है। इन विषयो पर अभिव्यक्त भावो और विचारों का अध्ययन और विश्लेषण करने पर प्रतीत होता है कि मानव कितना हीन और अपदस्य है। मानव पंच महाविकारो,आशाओ,और तृष्णाओन से प्रपीड़ित है। मानव सुलभ दुर्बलतायें,प्रत्येक मानव को दिग्भ्रान्त किये हुए हैं। इस प्रकार कबीर का सम्पूर्ण काव्य मानवीय प्रवृत्तियो का रोचक लेखा-जोखा है। कबीर की कविता जल-जीवन,मानव-जीवन के धरातल को प्रत्येक स्तर पर संस्पर्शों करती है। चाहे वह सामाजिक वण्यं विषय हो अथवा आध्यात्मिक,दाशनिक हो अथवा रहस्यवाद से सम्बन्धित हो,सभी क्षेत्रो मे कबीर मानव को हीनताओ,क्षुद्र्ता,और निम्न प्रवृतियों से ऊपर उठाकर आध्यात्मिकता,सामाजिकता एवं वृह्त्तार मानवता के उच्च घरातल पर प्रतिष्ठित और आसीन करने के लिये प्रयत्नशील है। मानवता के इतिहास में मानव समाज के कितने भी हिमायती उत्पन्न हुए हैं उनमे से कबीर का स्थान बड़ा उच्च और स्मृहणाय है। इसका कारण यह है कि कबीर ने जिन अनुभवो को हृदयगम किया वे सब यथार्थ और वास्तविक है। इसीलिये कबीर ने दया,विश्वबन्धुत्व और प्रेम की भावना पर विशेष जोर दिया है। कबीर ने मानववतावदी भावो से अनुप्राणित होकर कहा:-

दया दिल में राखिये,तू क्यों निरदयी होय।
साई के सब जीव है, कीडी कुंजर सोय।

दया,उदारता और क्षमा के सम्बन्ध मे कबीर ने अनेक युक्तपूणं उक्तियो को जनता के समक्ष प्रस्तुत किया। कबीर ने दान और क्षमा इन दो उदान्त अलौकिक गुणों के सम्बन्ध मे जाने कितनी साखियो की रचना की जिनमे से दो यहा उद्धृत की जाती है।

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दान दिये धन ना घटे, नदी न घटे नीर
आपनी आँखो देखिये,यो कीत कहे कबीर ।