यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

कबीर की भावभूमि

विश्व सहित्य के श्रेष्ठ कवियो मे,महाकवियो मे प्रतिभा-सम्पन्न सहित्य कारो मे,और उत्कृष्ट क्रन्तिकारी धर्मिक एवं सामाजिक नेताओ में,कव्य जगत मे नाना प्रकार के अभिनव,प्रतिमान संस्थापको मे,तथा मानव-जीवन के सूक्ष्म पर्यलोचोको मे कबीर पंथ के प्रवतंक,प्रबल आलोचक,प्रकाण्ड दार्शनिक ,प्रशिष्ठ स्पष्टवादी,तथा युग प्रवर्तक मानव,महामानवकवि महाकवि,और असाधरण जनवदी,विचारक तथा समाज सुधारक कबीर का स्थान विशिस्ट है। कबीर की कविता,रचना,प्रतिपद की आत्मा अप्रस्तुत योजना,भावपक्ष,कला पक्ष,मस्तिष्क पक्ष सभी कुरग अति यथार्थ,अतिवास्तविक, और अति सुपरिचित प्रतित होता है। कबीर के कव्य मे सहजता,सरलता, स्पष्टता,सुलभता और संवेदनात्मकता सहसा,शिक्षित,अशिक्षित,अध्दशिक्षित सभी के ह्रदय और मस्तिष्क को अपनी ओर आकर्षीत कर लेते है। जीवन और जगत को कबीर ने बहुत निकत,बहुत गहराई,बहुत गंम्भीरता और बहुत गौर से देखा था। आत्मानुभूति,आत्म चिन्तन,आत्म-मनन के आधर पर प्रस्तुत किये हुए कबीर आत्म कथन इसीलिये अति प्रभावशाली,अधिक प्रभावशाली,अधिक मर्मस्पर्शी और अधिक सजिव है। कबीर ने जो कुछ देख,उसे वाणी के मध्यम से यथातथ्य रुप में व्यक्त कर दिया। और इसीलिए कबीर ने रुढ़िवादी पंडितों,प्रदर्शन प्रिय सहित्यकरो,प्रचारको और अधिकसजीव हैं। कबीर ने जो कुछ देखा,उसे वारणी के माध्यम से यथथय रूप मे व्यकत कर दिया। और इसिलिये कबिर ने रूढिवदि पंडितों ,प्रदर्शन प्रिय सहित्यकारो, प्रचारकों और कवियों को चुनौती देते हुए कहा "तू कहता है कागद देखी, मै कहता हूं आंखो देखी" स्पष्ट है कि कबीर की कविता रचना, विचारधारा चिन्त्तत और प्रकाशन का आधार सत्य है, चिरन्तन सत्य है, शाशवत है। क्योकि कबीर सत्य को जीवन का आधार मानते है । कबीर की दृष्टि मे "सांच बराबर तप नहीं भूठ बराबर पाप। जाके हिरदे सांच है ता हिरदे गुरू आप"।

कबीर ने इसी सत्य की नीव पर जीवन, जगत और सहित्य को जिन भित्तियो का निर्माण किया वे बड़ी ही लोककल्यणकरि,आल्हादकारी और समन्वयकारी हैं। कबीर की कविता का हेतु,प्रयोजन,वण्यं विषय अथवा प्रतिपाध मानव है। काव्य की भूमिका मे उतर कर कबीर ने मानव-जीवन और समज का चित्रण,विवेचन और विश्लेषण किया है वह बहुत हो विशिष्ट है है। कबीर के