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नही पहुन पाने है।मेवल जानी सावक ही सहजावरथा को प्राप्त हो ता है।

   अलकार---(१)साग स्पक--स्म्पूर्ण पद।
           (२)पुनरुक्ति प्रकाश--रुचि-रुचि।
           (३)पदमंत्री--ग्यान वान।
   विशेष--(१)द्वितीय पक्ति का पाठान्तर इस प्रकार है---रचिहीं रचि मेलै।
का अर्थ होता है कि जिसमे इसे तूने भली भांति रचकर भेज दिया है।
   (२)पटगक--देखे टिप्पणी पद सख्या ४,७
   (३)गगन मण्डल--देखे टिप्पणी पद सख्या १६४
   (४)महज रूप--देखे टिप्पणी पद सख्या ५,१५५
   (५)पवन खेदा--देखे टिप्पणी पद सख्या 
   (६)तुलना करें--कूटस्थ चित्त ही कबीर का साधक मन है---
         रघुवर कहेउ लखन भल छाटू।
             करहु कतहू अब ठाहर ठाटू।
         लखन दीख पय उतर फरारा।
             चहु दिसि फिरेउ धनुष चिमि नारा।
         नदी पनच सर सम दम नाना।
             सकल फलुष कलि साउज नाना।
         चित्रकूट  जनु अचल अहेरी।
             चुफइ न घात मार मठ भेरी।
                       (रामचरितमानस,गोस्वामि तुलसीदास)
    हष्टव्य--योग साधना के अन्तर्गत प्राय अष्टचको का उल्लेख प्राप्त होता
रमनु कबीर प्राय पट्चको का ही वणन करते है।इन्होने तून्यचक एवं सुरति 
को छोड दिया है।कबीर के द्वार सकेतित पट्चक निम्नस्थ प्रकार है---
   (१)मूलाधार---इमका स्धिति-स्थान योनि मान गया है।इसमे चार

होने है।यह येक वणं का होता है।इमका लोक भू है।इसका ध्यान करने क प्रल्म की ध्वनि हानी है,वह कमश वं,श्ं,प्ं,म्ं की होती है।उसमे

राम दोने पर मनुष्य यका,मयंविधा विनोदी,आरोग्य,मनुष्यो मे श्रेष्ठ,

मित नधा काव्य-प्रवग्न मे ममयं हो जाता है।

  (२)स्याघिष्टान चक-एमका स्थिति-स्थान पेडू माना गया है।इसमे 
दम लेना है।यह मिधुर बणं का तोना है।हमका लोक "मुच" है।इसका ध्यान 
मै जो      प्रहार ही ध्वनि       होनी है,वह क्शमश भ,यं,रं,लं,वं 
       ।    मिय राम मे अह्स्य     विकार का नाश,तोगियो मे श्रेष्ठ,
                मे ममयं विनेयगुण मनुष्य मे उत्पन्न हो 
   ।
  (३)मपिरम धक---इसका रियनि-स्थान नानि रहा गया है।इसमे