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एक से एक समान भये , भगत यही संसार । गुरु ऋन्यास सुनायहु , जो मोहि भक्ति पियास । (गुरुन्यास -- एक अप्रकाशित रचना से ) आध्यात्मिक पक्ष मे कबीर की महता को स्वीकार करने वाले चरण्दास ने नागरिकता के उज्जवल पक्ष का चित्रण भी किया है । कबीर उपकारी , परोपकारी व्यक्ति थे । उनके जीवन-च्ररित्र से मुक्ति का मार्ग खोजने वाले पंडितो और मुल्लओ को कबीर का यह नया प्रकाश कभी भी स्वीकार नही था । कबीर के सत्यावर्णो , उच्चादर्शो का वर्ग ने बड़ा उपहास किया । देखिये गरीब दास की ये पंक्तियो इस बात को स्प्ष्ट करती हैं :- याभी मर्द कबीर है जगत करै उपहास । कैसो वनिजारा भाया , भगत बड़ाई दास ॥ गरीबदास कबीर को धर्म , समाज और आध्यात्मिक क्षेत्र मे एक महान क्रांतिकारी मानते थे । इतना ही नही वे कबीर को ज्ञान के क्षेत्र मे चक्रवर्ती मानते थे :-
ऐसा निरमल नाम है,निरमल करै सरीर| त्रौर ज्ञान मंडलीक है,चकवै ज्ञान कबीर || इसके पश्चात कबीर के विषय मे कहने के लिये क्या कुछ और रह जाता है । धनी धर्मदास ने कबीर को अपने युग का महापुरुष माना है। उनके अनुसार ऎसे महापुरुष बड़ॆ सौभाग्य से मिलते है । उनका संसर्ग आवागमन से मुक्त होने वाला है । (पृ० ४३ ) समान्य रुप से घमंदास ने कबीर को एक महान संत माना है । कबीर के विषय मे संतो के उपयुक्त कथनो को पढ़ जाने के पशचात् कबीर के चरित्र और व्यक्तित्व को समस्त विशेषताऍं स्पष्ट हो जाती हैं । समस्त सतो का कबीर के व्यक्तित्व के विषय मे मत साम्य है । सभी का मत है कि वे युग के श्रेष्ठ साधक थे और उन्होने उस मधुर ज्योति के दर्शन कर लिये थे कि समस्त संसार आलोकित है । प्राय : सभी संत कवियो ने कबीर को गोरखनाय और रामानन्द के समकक्ष स्थान दिया है । कबीर की लोकप्रियता पर सभी का एक मत है । कबीर का आविर्भाव काल -- भारतीय जन -जीवन की परम्परा बड़ी महान रही हैं । हमरे देश के महाकवियो ने सहस्त्रो पदो , छन्दो और पृष्ठो की रचना के बाद भी अपेने भी विषय मे एक भी शब्द का उल्लेख नहीं किया । समस्त ।