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ग्रन्थावली]

     विचार कर कि जगत का सचेतन जीव मात्र ही भगवान है।पत्र-पुष्प तोडकर तू इस जड मूर्ति
     के रूप मे किसकी सेवा कर रही है।मालिन अज्ञान के वशीभूत होकर फूल पत्ती तोडती है।
     वह यह जानती ही नही है कि प्रत्येक पत्ती मे जीव है-अर्थात पत्ती तोडकर वह हिन्सा करती
     है।जिस पत्थर की मूर्ति के लिए वह पत्थर तोडती है वह तो निर्जीव है।जिस कारीगर ने 
     टान्कि से पत्थर को काट काट कर मूर्ति को बनाया है,उसने कार्य-काल मे इस मूर्ति की
     छाती पर पैर रखकर ही यह कार्य किया है। यदि यह मूर्ति सच्ची और शक्ति सम्पन्न होती, तो छाती पर पैर      रखने  वाले उस कारीगर को अवश्य ही खा जाती।इस मूर्ति के ऊपर लड्डू
     मिठाई ,लपसी आदि के रूप मे बहुत सा पुजापा चढाया जाता है।पुजारी इस मूर्ति की
     पूजा करके इस मूर्ति की आँखो मे धूल भोक कर इस समस्त चढावे को लेकर चलता
     बनता है।पत्ती ब्रह्मा है,पुष्प बिष्णु है तथा फल-फूल महादेव है।इन तीनो मे एक ही देव 
     विराजता है।अब आप ही स्वय विचारे कि किसको किस देव पर चढा कर पूजा जाए?
     (सर्वत्र एक ही परम तत्व व्याप्त है)।अज्ञान जनित इस ब्राह्मोपचार मे एक या दो व्यक्ति
     नही अपितु समस्त सारा संसार ही भ्रमित है।इस भ्रम मे केवल एक कबीरदास नही भूले
     है,क्योकि उन्होने परमतत्त्व राम का आश्रय ग्रहण किया है।
           अलंकार-(१)गूढोक्ति-तू -सेव।
                  (२)पुनरूक्ति प्रकाश-पाती पाती।
                  (३)वक्तोक्ति-तौ---खाव।
                  (४)अनुप्रास-लाडू,लावण,लापसी,मेला की आव्रुत्ति।
            विशेष-(१)मुहावरो का प्रयोग-छाती ऊपर पाव,दै मूरति मुह छार।
               (२)मूर्ति पूजा का विरोध है एव सच्ची उपासना की स्थापना है।
               (३)मगलेनी मे 'लक्षणा' है।
               (४)पाती महादेव।
             अद्वैतवाद का प्रतिपादन है।त्रिमूर्ति की कल्पना अद्वौतवाद के अनुकूल है।
        कबीर का विरोध बुतपरस्ती अथवा अज्ञान जन्य मूर्ति पूजा से है।
             कबीर पेडो मे भी जीवन मानते है।इससे अधिक भगवान की सर्वव्यापकता
        क्या हो सकती है?
        तुलना करें-
              पत्र ब्रह्मा कली बिसनो फल मध्दे रूद्रम देवा।
          तीनि देव का छेद किया तुम्हें करहु कौन की सेवा।
               (५)एक न भूला---अघार।
          पाठान्तर देख लीजिए-
              मालिनी मूली जग भुलाना हम भुलाने नाहिं।
              कहु कबीर हम राम राखे किया करि हरि राड।