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था । ऐसी दशा मे कबीर ने जनता को साधना का जो मार्ग प्रदर्शित किया, वही सब से अधिक कल्याणप्रद था , साथ ही समय की मार्ग पूर्ण करता था । कबीर का व्यक्तित्व इस दृष्टि से बड़ा महत्वपुर्ण है । तथ्य तो यह है कि पीपा की प्रथम दो पंक्तियां कबीर के समस्त महत्व को प्रकाश मे ला देती हैं ।

मिर्जा मोहसिन फानी ने 'दविस्ताने मजाहिव' मे लिखा है कि--

"कबीर जुलाहानजादकि श्रज़ मोवव्हिदान मशहूर हिन्द अस्त ।
मर्दुम बारामानन गुफतन्द दरीशहर जुलाहान जादेम्त ॥"

अर्थात् "भारतवर्ष के जुलाहो मे कबीर प्रसिद्ध अद्वैत ब्रह्म का उपासक था । लोग रामानन्द से कहते हैं कि इस प्रकार के एक जुलाहे का लड़का है जो अपने को आपका शिष्य कहता है।"

गुरुग्रंथ साहब मे सिद्ध सन्तो के साथ काबीर का भी कई बार उल्लेख हुआ है । उदाहरणार्थ :--

( १ )

नाम छीवा कबीरु जुलाहा पूरे गुरते गति पाई ।

(पृ० ५६)

( २ )

हरि के नाम कबीर उजागर जनम जनम के काटे कागर ।

(पृ० २६४)

( ३ )

नाम देव कबीर विलोभनु सधन्न रैनु तरै ।
कहि रबिदास सुनहु से सबहु हरि जी उते समै सरै ॥

(पृ० ५६८)

इन सभी पंक्तियों से कबीर की भक्ति भावना पर प्रकाश पड़ता है । इसमे कोइ शका की बात नही है कि कबीर ने सवंप्रथम भारतीय समाज मे साधना के सब पथ और वाध्याचार के भेद दिखा कर जनता को नि:सार बातो से दूर रहने के लिये उपदेश दिया था । ज्ञात होना है कि वे दीन दुखियो की निरन्तर सेवा किया करते थे । कितने ही व्यक्तियो को वे अपने घर का सामान उठाकर दे देते और उन्हे संकट से उनमुक्त करते थे । चरणदास को निम्नमलिखित पक्तियां कबीर के चरित्र के उज्ज्वल पक्ष की उद्घाटिका है :--

दास कबीरा जाति जोलाहा , भये संत हितकारी ।

फ० ना० फा० ---२