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साध महिमा कौ अंग]
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है गै गैंवर सघन घन, छत्र धजा फरराइ।
ता सुख थैं भिष्या भलो, हरि सुमिरत दिन जाइ॥४॥

सन्दर्भ――हरि भक्ति मे लीन रहने वाला संसार के ऐश्वयं प्राप्त प्राणी से श्रेष्ठ है।

भावार्थ――किसी के पास अनेक हाथी, घोड़े व प्रजा से पूर्ण गाव हो, समस्त ऐश्वर्यं की सामग्री हो, शीश पर छत्र हो व महल की अट्टालिकाओ पर ध्वजा फहराती हो, परन्तु हरि भक्ति न हो तो सब व्यर्थं है उन सब की अपेक्षा हरि स्मरण करने वाला वह भिक्षुक अच्छा है जो दिन भर माँग कर खाता है, परन्तु हरि स्मरण मे सम्पूर्ण दिवस लीन रहता है।

शव्दार्थ――है=हय, घोड़े गै=गयंद, हाथी। सघन घन=घनी भूत जनसंख्या। भिष्या=भिक्षा।

है गै गैंवर सघन घन, छत्रपती की नारि।
तास पटंतर नां तुलै, हरिजन की पनिहारि॥५॥

शब्दार्थ――पटतर=बराबर। हरिजन= वैष्णव।

संदर्भ――वैष्णव की चेरी, दासी समस्त ऐश्वयो से युक्त रानी से श्रेष्ठ है।

भावार्थ――हाथी, घोड़े एवं समस्त ऐश्वयो से युक्त रानी से भी श्रेष्ठ वैष्णवो की चेरी है।

क्यूॅ नृप नारी नींदये, क्यूॅ पनिहारी कौं मांन।
वा मांग संवारै पीव कौं, वा नित उठि सुमिरै रांम॥६॥

सन्दर्भ――दासी का मान और रानी की निन्दा क्यो होती है।

भावार्थ――ऐश्वर्यं युक्त राजा की रानी की निन्दा और दासी का सम्मान क्यो होता है? किस कारण दासी रानी से श्रेष्ठ बताई गई है? रानी लौकिक प्रियतम के हेतु श्रृगांर करती है और दासी नित्य अपने स्वामी राम का स्मरण करती है। इसलिए दासी श्रेष्ट है।

शब्दार्थ――मान=सम्मान।

कबीर धनि ते सुंदरी, जिनि जाया बैसनौ पूत।
रांम सुमरि निरभै हुवा, सब जग गया अऊत॥७॥

सन्दर्भ――वह स्त्री धन्य है, जिसने वैष्णव पुत्र को जन्म दिया।

भावार्थ――कबीर दास जी का कथन है कि पुत्र को जन्म देने वाली सुन्दरी धन्य है। वह राम के नाम का स्मरण करके निर्भय हो जाता है। इसके अतिरिक्त सम्पूर्ण संसार तो निपूत ही रह गया।