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साध साषीभूत कौ अंग]
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भावार्थ――सर्वत्र सभी प्राणियों मे साई का निवास है, कोई भी हृदय शय्या उससे शून्य नहीं है। परन्तु हे सखी! भाग्यवान वही है जिसके हृदय मे वह प्रकट हो गये।

शव्दार्थ――परगट=प्रकट। भाग=भाग्य।

पावक रूपी रांम है, घटि घटि रह्या समाइ।
चित चकमक लगै नहीं, ताथै धूंवां ह्वै ह्वै जाई॥१६॥

सन्दर्भ――अग्नि रूपी राम घट घट मे निवास करता है।

भावार्थ――राम उस अग्नि के समान है जो भस्मावृत रहकर प्रत्येक हृदय में समायी रहती है। परन्तु चित्त रूपी चकमक पत्थर उससे स्पर्श नहीं हो पाता है। इसी कारण अग्नि धुआँ दे देकर रह जाती है। तात्पर्य यह है कि चित्तवृत्तियाँ राम मे केन्द्रित होने पर ही उसके दर्शन सम्भव है।

शब्दार्थ――पावक=अग्नि।

कबीर खालिक जागिया, और न जागै कोइ।
कै जागै विषई विष भर्या, कै दास बंदगी होइ॥२०॥

सन्दर्भ――ईश्वर तथा हरि भक्ति और विषयी जागते रहते हैं।

भावार्थ――कबीर दास जी का कथन है कि उनका स्वामी (ईश्वर) सदैव जागता रहता है और कोई नही। इस संसार मे या तो विषयी व्यक्ति नाना भोगो में संलिप्त रह कर जागता है या फिर हरि भक्त जो सदैव भक्ति मे निमग्नः रहता है।

शब्दार्थ――खालिक=ईश्वर।

कबीर चाल्या जाइ था, आगैं मिल्या खुदाइ।
मीरां मुझ सौं यौं कह्या, किनि फुरमाई गाइ॥२१॥५१४॥

सन्दर्भ――ईश्वर प्राप्ति के अनुभव का गान।

भावार्थ――कबीर का कथन है कि मैं अपनी धुन मे मस्त चला जा रहा था, अर्थात् साधन के मार्ग पर अग्रसर था कि आगे चलकर ईश्वर से भेट हो गई। उन्होने मुझसे कहा कि तु अपने विचारों को गाकर क्यो नहीं प्रस्तुत करता है।

शब्दार्थ――खुदाइ=ईश्वर। चाल्या=चला।