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[कबीर की साखी
 

 

सेष सबूरी बाहिरा, क्या हज काबै जाइ।
जिनकी दिल स्याबति नहीं, तिनकौ कहाँ खुदाइ॥११॥

सन्दर्भ――ईश्वर प्राप्ति के लिए भ्रम और संशय का त्याग आवश्यक है।

भावार्थ――कबीरदास जी कहते हैं कि हे शेख! तू सतोष से परे है फिर तेरे हज और कावे जाने से कोई लाभ नही है जिनका हृदय सच्चा नहीं है उन्हे ईश्वर कहीं भी नहीं प्राप्त होता है।

शब्दार्थ――सबूरी=सब्, संतोष। स्याबति=पूर्णं, सच्चा।

खूब खाँड है खीचड़ी,माँहि पड़ै टुक लूॅण।
पेड़ा रोटी खाइ करि, गला कटावै कौंण॥१२॥

सन्दर्भ――मरणोपरान्त दण्ड से बचने के लिए सादा जीवन व्यतीत करना श्रेयष्कर है।

भावार्थ――यदि खिचड़ी मे थोडा सा नमक पड जाय तो वही खाँड के समान मधुर हो जाती है। पेडा और रोटी खा करके भी मृत्यु के उपरान्त अपना गला मौन कटावे? कष्ट कौन सहन करे?

शब्दार्थ――टुक=थोडा सा। लूंण=नमक।

पापी पूजा बैसि करि, भषै माँस मद दोइ।
तिनकी दष्या मुकति नहीं, कोटि नरक फल होइ॥१३॥

सन्दर्भ――धर्म के नाम पर जीव हिंसा करने वालो को मुक्ति नही मिलती है।

भावार्थ――पापी लोग पूजा के नाम पर बैठकर मास और मदिरा का सेवन करते है ऐसे पापियो की इस दशा पर उन्हे मुक्ति नहीं मिल पाती है उनको तो करोड़ो नरको का फल भोगना पडता है। यातनायें सहन करनी पड़ती हैं।

शब्दार्थ――वैसीकरि=बैठकर। दष्या=दशा मुकति=मुक्ति मोक्ष।

सकल वरण इकत्र है, सकति पूजि मिलि खाँहिं।
हरि दासनि की भ्राँति करि, केवल जमपुर जाँहिं॥१४॥

सन्दर्भ――शाक्तो के जीव हिंसा के प्रति विरोध प्रदर्शित है।

भावार्थ――शक्ति सम्प्रदाय को मानने वाले सभी लोग एकत्र होकर बलि चढाकर शक्ति की पूजा करते हैं और फिर सभी मिलकर प्रसाद के रूप में उसका भक्षण करते हैं वे केवल ईश्वर-भक्त बनने के भ्रम मे पडे रहते हैं वास्तविकता तो यह कि वे सीधे यमलोक जाते हैं।

शब्दार्थ――सकति=शक्ति।