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[कबीर की साखी
 

 

सन्दर्भ――पचेन्द्रियो को वश में करने वाला व्यक्ति ही सच्चा निष्काम भवत है।

भावार्थ――ईश्वर प्राप्ति को सभी सरल कहते हैं किन्तु उस सरल ब्रह्म को कोई पहचान नहीं पाता है। जो व्यक्ति पाँचो इन्द्रियों को अपने वश मे कर लेता है वही सहज और निष्काम भक्त होता है।

शव्दार्थ――पाँचू=पाँचो इन्द्रियो को। परसती=वश मे।

विशेष――पुनरुक्ति अलंकार।

सहजैं सहजैं सब गए, सुत षित कांमणि कांम।
एकमेक ह्वै मिलि रहया, दासि कबीरा राम॥३॥

सन्दर्भ――संसार की प्रत्येक वस्तु नश्वर है। केवल ईश्वर भक्त ही परमात्मा मे तदाकार हो जाता है।

भावार्थ――कबीरदास जी कहते हैं पुत्र, धन, स्त्री और कामनाएँ धीरे- घीरे एक-एक करके सभी चले गये। और सब के नष्ट होने पर सब से वैराग्य होने पर भक्त कबीर ईश्वर से मिल कर एकाकार हो गये।

शब्दार्थ――सहजैं सहजैं=शमैःशमै।

सहज सहज सबको कहै, सहज न चीन्हैं कोइ।
जिन्ह सहजैं हरिणी मिलै, सहज कहीजै सोइ॥४॥४०८॥

संदर्भ――ईश्वर को सरलता से प्राप्त कर लेना हो सहजावस्था है।

भावार्थ――ईश्वर प्राप्ति को सरल तो सभी कहते हैं किन्तु उस सरल को (ब्रह्म को) कोई जान नहीं पाता है। जिस व्यक्ति को सुगमता से प्रभु मिल जायें वही सहन साधक है और वही अवस्था सहजावस्था है।

शब्दार्थ――हरि जी=परब्रह्म, परमात्मा।