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करणीं बिना कथणी कौ अङ्ग]
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शब्दार्थ―मोर तोर=अपना पराया। जेवडी=रस्सी। कांसि=काँस कंडूवा=बाली के अन्दर बिगडा हुआ दाना। दाझण=जलना।


 

१८. करणीं बिना कथणीं कौ अंग

कथणीं कथी तौ क्या मया, जे करणीं नां ठहराइ।
कालबूत के कोट ज्यूॅ, देषत ही ढहि जाई॥१॥

सन्दर्भ―कथनो के अनुसार ही करणी का होना आवश्यक है?

भावार्थ―यदि केवल कहते ही कहते मनुष्य ने अपना जीवन व्यतीत कर दिया और उसी अनुसार कार्यं न किया तो उससे क्या लाभ। जिस प्रकार कालवूत के बने हुए कगूरे साधारण प्रयास से ही देखते ही देखते नष्ट हो जाते हैं उसी प्रकार मनुष्य के उस मौखिक कथन का भी कोई अस्तित्व नहीं रहता है वे साधारण परीक्षा मे भी खरे नहीं उतरते।

शब्दार्थ―कथणी=कथन, कहना। करणी=कर्म।

जैसी मुख तैं नीकसै, तैसी चालै चाल।
पारब्रह्म नेड़ा रहै, पल में करै निहाल॥२॥

सन्दर्भ―यदि कथनी के समान आचरण भी हो जाय तो क्षण भर मे मुक्ति मिल जाय।

भावार्थ―जिस प्रकार की बातें मनुष्य के मुख से दूसरों के लिए निकलती हैं यदि उस पर वह स्वयं भी आचरण करे तो परब्रह्म उसके समीप ही रहता है और क्षण भर मे उसको मुक्ति प्रदान करके निहाल कर देता है।

शब्दार्थ―नेड़ा=समीप। निहाल=प्रसन्न।

जैसी मुख तैं नीकसै, तैसी चालै नाहिं।
मानिष नहीं ते स्वान गति, बांध्या जमपुर जाँहि॥३॥

सन्दर्भ―केवल दूसरो को हो उपदेश देने वाला और स्वयं उस पर आचरण न करने वाला व्यक्ति कुत्ते के समान होता है।

भावार्थ―जो व्यक्ति अपने मुख से दूसरो के उपदेश हेतु निकाली हुई बात पर स्वयं नही चलते हैं आचरण नहीं करते हैं वे व्यक्ति मनुष्य नहीं है बल्कि कुत्तो के समान हैं वे पापाचरण के कारण बाँधकर यमलोक ले जाये जाते हैं।