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चितावणी को अग]
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संदर्भ―सासारिक वैभव थोडे दिनों का हो होता है मरणोपरात उसका चिह्न भी नहीं रह जाता है। अतः ईश्वर का नाम स्मरण कर जीवन को सार्थक करना चाहिए।

भावार्थ―जिन लोगो के दरवाजो पर सदैव वैभव सूचक नगाडे बजा करते थे और मदमस्त हाथी घूमा करते थे। वे वैभवशाली लोग भो ईश्वर के एक नाम के विना अपने जीवन को ससार मे व्यर्थं हो खो बैठे। शब्दार्थ―मैगल=मदमस्त हाथी।

ढोल दमामा दुड़ बड़ी, सहनाई संग मेरि।
औसर चल्या बजाइ करि, है कोइ राखै फेरि॥३॥

संदर्भ―कोई भी सासारिक आकर्षण मृत्यु को रोकने मे समर्थ नहीं है।

भावार्थ―प्रत्येक व्यक्ति अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार ढोल नगाड़ा डुगड्डगी, शहनाई तथा मेटी को बजाते हुए मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। उनका वैभव और ऐश्वर्य मृत्यु को रोकने मे समर्थ नहीं हो पाता है।

शब्दार्थ―दुडवडी = ढुगढगी।

सातों शब्द जु बाजते, घरि घरि होते राग।
ते मन्दिर खाली पड़े, बैसण लागे लाग॥४॥

संदर्भ―मृत्यु संपूर्णं वैभवो को नष्ट कर देती है।

भावार्थ―जिनके दरवाजे पर सप्तस्वरो का राग बजता या अर्थात् जहाँ वैभव का प्रत्येक उपकरण उपस्थित था माज वे वैभवपूर्ण महल भी खालो पढे है उन पर आज पौए बैठे हुए हैं। उनका समस्त वैभव नष्ट हो गया है।

शब्दार्थ―सातों सवद=सप्त स्वर। वैसरण=बैठने लगे।

कबीर थोड़ा जीवडाँ, माड़े बहुत मॅगण।
सबही ऊभा मेल्हि गया, राव रंक सुलितान॥५॥

संदर्भ―मनुष्य जीवन को सुखमय बनाने के लिए नानावि प्रयास करता है और वे सुख के सघन पूर्ण भी नही हो पाते कि विनाश हो जाता है।

भावार्थ―कबीर दास भी कहते है कि यह उनसे हुए भी कि जीवन क्षणिक है मनुष्य मानन्वोत्मास के वनेकानेक उपकरण डटाना रहता है और कठोर पर माल के द्वारा यह क्षण भर मे ही नष्ट कर दिया जाता हैं। राजा सब इस समार मे विदा हो जाता है।