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निहकर्मी पतिव्रता कौ अंग]
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शब्दार्थ―दो जग=दो जख-वर्क। मिस्न=बहिश्त-स्वर्गं। वाँझ=रहित है।

जे ओ एकै न जाँणियाँ, तो जाँण्याँ सव जाँण।
जे ओ एक न जाँणियाँ, वो सब ही जाँण अजाँण॥८॥

सन्दर्भ―परमात्मा के ज्ञान के अतिरिक्त और सव ज्ञान व्यर्थं है।

भावार्थ―जिसने एक परमात्मा को जान लिया उसने संसार के सम्पूर्ण ज्ञान को प्राप्त कर लिया। और जिसने उस एक परमात्मा को नहीं जाना उसका संसार की अन्य वस्तुओं का ज्ञान अज्ञान के ही समान है।

शब्दार्थ―जांण=ज्ञान।

कबीर एक न जाँणियाँ, तौ बहुजाँण्याँ क्या होइ।
एकै तैं सव होत है, सवतैं एक न होइ॥६॥

सन्दर्भ―सच्चा ज्ञान ब्रह्मज्ञान है। उससे अन्य ज्ञान प्राप्त होते हैं।

भावार्थ―कबीरदास जी कहते हैं जिसने एक परमात्मा को नहीं जाना उसका और सव ज्ञान क्या होगा। वह व्यर्थ है। उस एक परमात्मा के ज्ञान से तो और सभी ज्ञान प्राप्त हो जाते हैं कि और सब ज्ञानो से उस परमात्मा का ज्ञान नहीं होता है।

शब्दार्थ―एक=परमात्मा। बहु=अन्य समस्त ज्ञान।

जब लगि भगति सकांमता, तब लगि निर्फल सेव।
कहै कबीर वै क्यूॅ मिलै, निहकांमी निज देव॥१०॥

सन्दर्भ―भक्ति कामनारहित होनी चाहिए।

भावार्थ―जब तक भक्ति मे कामना मिली होती है किसी स्वार्थ के लिए ईश्वर का स्मरण किया जाता है तब तक ईश्वर की सम्पूर्ण सेवा व्यर्थ होती है। कबीरदास जी कहते हैं कि जो ईश्वर निष्काम है उसे तो निष्काम भक्ति से हो प्राप्त किया जा सकता है साम भक्ति से यह कैसे मिल सकता है?

शब्दार्थ―सकीमता=कामनामय। निर्फल=निष्कल निहकामी= निष्कामी।

आसा एक जु राम की, दूजी आस निराम।
पाँणी माँहै घर करैं, ते भी मरैं पियास॥११॥