सन्दर्भ—सुरति और निरति से परिचय होने पर सम्स्त रहस्य स्वत - उदभासित गया।
भावार्थ—सुरति निरति मे प्रविष्ट हो गई, और निरति के साथ मिलकर एकाकार हो गई। सुरति और निरति का परिचय हो जाने के पश्चात् ब्रह्म के रहस्य का द्वार स्वात: उद्घाटित हो गया।
शब्दार्थ—स्यम = स्वयं।
सुरति सुमांण निरति मैं,श्रजपा मांहै जाप।
लेख समांण अलेख मै,यू आपा मांहे आप॥ २३ ॥
सन्दर्भ—सुरति निरति मे प्रविष्ट हो गई।
भावार्थ—सुरति निरति मे समाहित हो गई और जाप, अजपा जप मे परिवर्तित हो गया। इसी प्रकार साकार निराकर मे विलोन हो गया और आत्मा ईश्वर मे समाहित हो गई।
शब्दार्थ—लेख = साकार। अलेख = निराकर।
आया था संसार में, देषरग कौं बहु रूप।
कहै कबीरा संत हौ, पढ़ि गया नजरि अनुप ॥ २४ ॥
सन्दर्भ—संसार मे माया के विविध रूप देखने के लिए आया था।
भावार्थ—संसार मे माया के बहुरंग रूप को देखने के लिए आया था, परन्तु हे सन्त-जन अनुपम तत्व जब से दृष्टिगत हो गाया, तब से माया की समस्त दशाओ को मैं भूल गया।
शब्दार्थ—देपरग -देखने के लिए।
अंक भरे भरि भेटिया, मन में नाहीं धीर।
कहै कबीर ते क्यू मिले,जब लग दोइ सरीर॥ २५ ॥
सन्दर्भ—ब्रह्म से एकाकार हो कर अभिन्न हो गया।
भावार्थ—प्रेमाधिक्य के कारण प्रिय का बडी व्यग्रता के साथ आलिगन विध, दोनो शरीर एकाकार हो गए। कबीर कहते हैं जब तक प्रेम तत्व को प्रबलता नही होती हे तब तक दोनो एकाकार केसे हो सकते हे?
शब्दार्थ—अंक = गोद।
सचुपाया सुख ऊपना, अरु दिल दरिया पूरि।
सकल पाप सड़जैं गये, जब जाई मिल्या हजूरि॥ २६ ॥
सन्दर्भ—हुजूर के दर्शन होते ही सम्रहन पाप और अलेश स्वतः विचि्छन हो गए।