यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
परचा कौ अंग]
[१२५
 

 

प्यंजर प्रेम प्रकासिया, अंतरि भया उजास।
मुख कस्तूरी महमहीं, बाँणी फूटी वास॥१४॥

सन्दर्भ— के प्रकट होते हो अन्तस उज्ज्वल हो गया और सुन्दर प्रेम से ओत-प्रोत वाणी प्रस्फुटित हुई।

भावार्थ—जब से प्रेम जाग्रत हुआ अन्तस उज्ज्वल हो गया और ब्रह्म रूपी कस्तूरी से सुवासित वाणी प्रस्फुटित हुई।

शब्दार्थ—प्यजर = पिंजर = शरीर। अतरि = हृदय। उजारु = उज्ज्वल। कस्तूरी = कस्तूरी।

मन लागा उन मन्न सौं, गगन पहुँचा जाइ।
देख्या चंद बिहूँणां, चांदिणाँ, तहाँ अलख निरंजन राइ॥१५॥

संदर्भ—मन ने उन्मनी अवस्था में ब्रह्मानुभूति प्राप्त की।

भावार्थ—संसार से उन्मुक्त होकर मन उनमनी अवस्था में पहुँच कर ब्रह्माण्ड में जा पहुँचा। वहाँ पर उसने स्वयं प्रकाश, प्रकाश पुन्ज ब्रह्म के दर्शन किए।

शब्दार्थ—उनमन्न = उन्मन्न। गगन = ब्रह्माण्ड।

मन लागाउन उन मन सौ, उन मन मनहिं विलग।
लूँण बिलगा पाणियाँ, पांणीं लूँ बिलग॥१६॥

संदर्भ—मन ब्रह्म से मिलकर एकाकार हो गया।

भावार्थ—मन उन्मनी अवस्था में प्रविष्ट हुआ और उनमन के साथ मिल कर दोनों अभिन्न हो गए। पानी और नमक मिलकर एक हो गए, एकाकार हो गए।

शब्दार्थ—लूँण = नमक।

पांणीं ही तैं हिम भया हिम ह्वै गया बिलाइ।
जो कुछ था सोई भया, अब कछू कह्या न जाइ॥१७।।

सन्दर्भ—आत्मा और परमात्मा की एकात्मकता अनिर्वचनीय है।

भावार्थ—पानी से ही हिम का निर्माण होता है और हिम पुनः घुलकर पानी के रूप में परिवर्तित हो जाता है। इसी प्रकार ब्रह्म से उद्भूत होकर आत्मा ब्रह्मकार हो जाती है। आत्मा और परमात्मा का एकाकार होना अनियर्वाचनीय है

शब्दार्थ—पाँणी = पानी।

भली भई जु मैं पड्या, गई दशा सय भूलि ।
पाला गलि पांणी भया, दुलि मिलिया उस कृति॥१८॥