कबीर का युग
कबीर का आविर्भाव-काल एक संदिग्ध विषय है। इस सम्बन्ध में स्पष्ट अन्तर्साक्ष्य प्रमाण नहीं उपलब्ध है। कबीर के पदों में केवल दो स्थानों पर तत्कालीन आविर्भावकाल—शासक सिकन्दर लोदी के अत्याचार का उल्लेख मिलता है।
प्रथम संकेत रागु गौंड के चतुर्थ पद में हुआ है और द्वितीय रागु भैरव [१] के अठारहवें पद में। इन पदों में काजी द्वारा कबीर पर हाथी चलवाने तथा जंजीर में बाँध कर गंगा में डुबाने के प्रयत्न का वर्णन है। परन्तु इन दोनों पदों में सिकन्दर लोदी के नाम का कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता है। परची आदि ग्रंथों में सिकन्दर लोदी ने जो-जो अत्याचार किए थे, उनमें उपर्युक्त दोनों घटनाएँ सम्मिलित हैं। अतः
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भुजा वाँधि मिलाकर डारिओ। हसती क्रोपि मूँड महि मारिओ॥
हसती भागि कै चीसा मारैं। इआ मूरति कै हउ बलिहारै॥
आहि मेरे ठाकुर तुमरो जोरु। काजी बकिवो हसती तोरु॥१॥
रे महावत तुमु डारउ काटि। इसहि तुरावहु घालहु साटि॥
हसती न तोरै घरै घिआनु। बाकै रिदै वसै भगवानु॥२॥
किआ अपराधु संत है कीन्हा। वाँधि पोटि कुँचर कउ दीन्हा॥
कु चरू पोट लै लै नमसकारै। बूझी नहीं काजी अधियारै॥३॥
तीनि वार पातीआ भरि लीना। मन कठोरु अजहू न पतीना॥
कहि कबीर हमरा गोविन्दु। चउथे पद महि जनका जिन्दु॥४॥
(राग गौंड ४)
तथा—
गग गुसाइनि गहरि गम्भीर। जंजीर वाघि करि खरे कबीर॥
मनु न डिगैं तनु काहे कउ डराइ। चरन कमलचित रहियो समाइ॥१॥
गंगा को लहरि मेरी टुटी जंजीर। मृगछाला पर बैठे कबीर॥
कहि कबीर कोउ सग न साथ। जल थल राखन है रघुनाथ॥
(रागु भैरउ १८)
—सन्त कबीर
—डा॰ रामकुमार वर्मा